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भाव-संग्रह .
अर्थ - इस प्रकार ऊपर जो सम्यग्दर्शन के आठ गुण बतलायें है उनके साथ चिन की दृढ़ता पूर्वक सम्यग्दर्शन भारत करता हुआ भगवान जिनेन्द्र देव के कहे हुए पदार्थों का श्रद्धान करता है वह जीव सम्बग्दुष्टी कहलाता है । आगे नौ पदार्थों के नाम कहते हैं ।
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ते पुण
जीवा जीवा पुष्णं पावो य आसबो व तहा । संवर णिज्जरणां पिय बंधो मोक्यो य णाम होंति ।। २८५ ।।
ते
पुण: जीवाजीव पुण्यं पापञ्च सवश्च तथा । संवरो निर्जराऽपि च वंधो मोक्षश्च नव भवन्ति ।। २८५ ।।
अर्थ- जीव अजीव आस्रव बंध संवर निर्जरा मोक्ष पुण्य पाप नाँ पदार्थ है ।
आगं जीवका स्वरूप कहते हैं ।
जोवी अuts freat उथओग संजुदो देहमित्तो य । कत्ता भोत्ता चेत्ता ण हु मुक्तो सहाब उद्ङगई ॥ २८६ ॥
जीवोऽनादिः नित्यः उपयोगसंयुतो देहमात्रश्च । कर्ता मोक्ता चेतयता न तु मूर्तः स्वभावोर्ध्वगतिः ॥ २८६ ॥
अर्थ- यह जीव अनादि है. अनिधन है, उपयोग स्वरूप है शरीर के प्रमाण के समान है, कर्ता है भोक्ता है चेतना सहित है अमूर्त है और स्वभाव से ही ऊर्ध्व गमन करने वाला है ।
पाणचक्कपउतो जीवस्सइ जो हु जीविओो पुव्वं । जीवेइ बद्माणं जीवत्त गुण समावण्णो ॥ २८७ ॥
प्राण चतुष्क प्रयुक्तः जोविष्यति यो हि जीवसः पूर्वम् । जीवति वर्तमाने जीवत्वगुणसमापनः ।। २८७ ।।
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अर्थ- इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छवास ये चार प्राण कहलाते हैं ये चारों प्राण बाह्य प्राण है और इस संसारी जीव के चारों प्राण रहते है । जो जीव पहले जीवित था अब जीवित है और आगे जीवित रहेगा वह जीव कहलाता है। इस प्रकार जो ऊपर लिखे चारों