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भाव-संग्रह
जीव पे. परिणाम गग इंघ म्प हो जाने है । तब राग द्वंप रूप परिणामी के निमित्त न कर अनेक अन्य पुद्गल क्रर्म वर्गणाएं जीव के साथ कम Qाम पनि हो जाती हैं। जिस प्रकार घी के चिकने वर्तन पर चल आ आ कर चिपक जाती है इसी प्रकार राग द्वेष परिणामों के होने हो भन ३चन बाय की क्रियाओं का हाथ फिर अनेक प्रकार के कर्मों का बंब हो जाता है । इस कार पूर्व संचित कर्मों के उदय मे राग द्वेष रुप परिणाम होने है और राग द्वेष प परिणामों से फिर कमों का बंध जाता । सः परंपग मोक्ष प्राप्त होने तक बगवर चलती रहती है।
एक्कसमएण बद्धं कम्मं जीवेण सत्तभेहि । परिणवई आयु कम्म भूयाउ सेसेण ।। एक समयेन बद्धं कर्म जोवेण सप्तभेदैः : परिणति आयुः कर्मबद्धं भूतायुःशेषेण ।। ३२८ ।।
अर्थ- जीव के साथ प्रत्येक समय में बंधे हुए कर्म सात भेदों मे बंट जाते है । ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय नाम गोत्र अंतराय इन सातों कर्मों में बट जाते है 1 आयु कर्म का बंध विभाग में अर्थात् आय के दो भाग बीत जाने पर होता है तथा उस समय भी आय कर्म का बंध हो अथवा और भी आगे हो वा अंत समय में हो । जब आयु क्रम का बंध हो जाता है तब उसको गी भाग मिलने लगता है। इस प्रकार कर्मों का बंटवारा होता है।
आगे बंध के भेद बतलाते है। पो बंधो चउभेओ गायन्वो हो। सुत्तर्णािट्छो । पयडि छिदि अणुभागो पएसबंधो पुरा कहिओ ॥ ल बन्धश्चतुर्भदो ज्ञातव्यो भवति सुत्र निविष्टः । प्रकृति स्थित्यनुभाग प्रदेश बंधः पुरा कथितः ।। ३२६ 11
अर्थ- भगवान जिनेन्द्रदेव के हुए सिद्धांत शास्त्रों में वह बंध चार प्रकार का कहा है । तथा प्रकृतिबघ स्थितिबंध अनुभाग बंध और प्रदेश बंध ये अंध के चार भेद है।