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भात्र-संग्रह
अर्थ- सांख्य मतबाले रक्त पी पी कर उन्मत्त हो जाते है, स्त्रियों में सदा आसक्त रहते है, धर्म समस्त मार्गों को दूषित करने रहते है, दुष्ट होते है, दुःखदायक होते है, घृष्ट होते है, मिथ्यावादी होते है, मोक्ष मार्ग की निंदा करते रहते है, वे लोग इन्द्रियों को सुखी बनाते रहते है । परंतु आग के लिये वे लोग बिना किसी संदेह के महा दुःख भोगने के लिये दत्त चित्त रहते है। तथा इसीलिये उस मांख्य मत को मानने वाले उनके समस्त शिष्य नरक के महा दुःख के स्थानों को प्राप्त होते है।
आगे फिर भी कहते है। मज्जे धम्मो जोय हिसाई धम्मो । राई देवो दोसी देवो माया सुण्ण पि देवो ।। रत्ता मत्ता कत्तासत्ता में गुरु तेवि य पुज्जा । हा हा कट्टं णटो लोओ अहमहं कुणंतो ।। १८४ ।। मधे धर्मो मांसे धर्मो जीव हिसायां धर्यः ॥ रागोवेवो दोषीदेवो माया शून्यमपि देवः ।। रक्तमत्ताः कान्तासक्ता ये गुरव स्तेति य पूज्याः । हाहा कष्टं नष्टो लोकः अहमहं कुर्वन् ॥ १८४ ॥
अर्थ- सांस्य लोग कहते है कि मद्य पीने में भी धर्म है, मांस खाने में भी धर्म है, जोबों की हिंमा करने मे भी धर्म है, राग करनेवाला नी देव है द्वब करनेवाला भी देव है, माया रहित भी देव है, जो गुरु रक्त मांस आदि के सेवन करने में मदोन्मत्त है और स्त्रियों में आसक्त है ए में गुरु भी पूज्य माने जाते है इस प्ररार सांख्य लोग कहते है । इस पर आचार्य कहते है कि यह बड़े दुःख की बात है । इन सांख्य मतवालो ने महा अनर्थ करते हुए समस्त लोक को नष्ट कर दिया !
धुया मायर बहिणी अण्णादि पुलस्थिणि आयतिय वासवयण पपडे वि विप्पे । जा गिय कामाउरेण वेसगने उप्पण्णदप्पे