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भाव-संग्रह
न कर्दमे भवेन्मांस न काष्ठेषु तणेषु च ।
जीवशरीराद् भवेन्मासं तस्मान्मांस न भक्षयेत् ।। न तो कीचड़ में मांस है न काठ बा लकड़ी में मांस है और न तुगो मे घास फूस में मांस है । मांस सदा जीवों के शरीर से ही उत्पन्न होता है । इसलिये मांस भक्षण कभी नहीं करना चाहिये।
सर्व शुक्र भवेद ब्रम्हा विष्णुसिं प्रवर्तते । ईश्वरोप्यस्ति संघाते तस्मान्मांस न भक्षयेत् ।।
संसार में शुक्र वा वीर्य सब उत्पत्ति के कारण होने से ब्रह्मा कहलाते है । तथा पुष्टी वा पालन करने के कारण मांस की विष्णु संज्ञा है इस प्रकार इन जीवों का धान करने से ईश्वर का भी धात होता है । इसलिये मांस भक्षण नहीं करना चाहिये ।
मासं जीवं शरीरं भवेन्नवा मांसम् |
यद्वनिम्बो वृक्षो वृक्षस्तु भवेनवा निम्बः ।। मांस जितना है वह सब जीवों के शरीर से ही उत्पन्न होता है परन्तु जितमे जीवों के शरीर हैं वे सब मांस नहीं होते उनमें से कुछ जीवों के शरीर मांस रूप होते है और कुछ जीवों के शरीर मांस रूप नहीं होते। जैसे चलने फिरने वाले मत्स्य आदि के शरीर मांस रूप होते है और वृक्षादिक के शरीर मांस रूप नहीं होते । जैसे नीमका वृक्ष वृक्ष ही होता है परन्तु जितने वृक्ष है वे सव नीम के वृक्ष नहीं होते क्योंकि कोई वृक्ष आमके होते है कोई नीबूके होते है । इसी प्रकार समझ लेना चाहिये।
कश्चिदाहेति यत्सर्व धान्यपुष्पफलादिकम् ।।
मांसात्मकं न तरिक स्याज्जीवांगत्वप्रसंगतः ॥ .. कोई कोई यह कहते है कि संसार में जितने धान्य फल-फूल आदि है वे सब जीवके शरीर के ही अङग है इसलिये वे मांस रूप ही क्यों नही कहला सकते । परन्तु उनका यह कहना सर्वथा अनुचित है। . क्योंकि