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भाव-संग्रह
भावार्थ- कोई भी देव आय पूर्ण होने पर किसी की भी रक्षा नहीं कर सकता तथा आप रहते हुए किसी को मार नहीं सकता । यह निश्चित सिद्धांत है ।
इसी बात को उदाहरण देकर बतलाने है। जइ सब्व वेवयाओ मणुयं रक्खंति पुज्जियाओ य । तो कि सो वहवयणो ण रक्खिओ बिज्जसहस्सेण ॥ ८२ ।। यदि सर्वदेवता मनुजं रक्षयन्ति पूजिताश्च ।
तहि कि स दशवदनो न रक्षतो विद्यासहस्रेण ।। ८२ ॥
अर्थ- यदि पूजा वा बंदना किये हुए समस्त देवता मनुष्यों की रक्षा कर सकते है तो फिर राव के पास हजारों सिकाएँ थीं, फिर उन विद्याके अधिपति देवताओं ने उस रावण को रक्षा क्यों नहीं की ? रावण के पास जो चक्र था उसकी भी एक हजार देवता रक्षा करते थे, परंतु आयु पूर्ण होने पर उसी चक्र से वह रावण मारा गया । इमसे सिद्ध होता है कि कोई देव न किसी की रक्षा कर सकता है और न किसी को मार सकता है।
आगे किनकी पूजा विनय करनी चाहिये, सो कहते है। इस गाउं परमप्या अट्टारसदोसवज्जिओ देवो । पविज्जइ मत्तीए जइ लभइ च इच्छियं वत्थु ।। ८३।। इति ज्ञात्वा परमात्मानं अण्टादशदोषजितो देवः ।
प्रणम्यते भक्त्या येन लभ्यते इच्छितं वस्तु ।। ८३ ।।
अर्थ- यही समझकर अठारह दोषों से रहित जो अरहंत परमात्मा है उन्हीं को 'भक्ति पूर्वक नमस्कार करना चाहिये । भगवान अरहंत देवको नमस्कार करने से समस्त इच्छित पदार्थों की प्राप्ति होती है ।
भावार्थ- भगवान अरहंत देव वीतराग है । अठारह दोषों मे रहित है और सर्वज्ञ है। इसलिये वे ही नमस्कार करने से कुछ देते नहीं है क्योंकि वे तो वीतराग है फिर भी उनका आस्मा समस्त दोषों से