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माय-ग्रह
होते है और अपर्याप्तक होते है। यही कारण है कि स्त्रिया मे जीयो की हिंसा का सर्वथा त्याग कभी नहीं हो सकता । वयंाकि वे जीत्र उत्पन्न होते रहते है और मरते रहते है । इसलिय स्त्रियां केवल संकल्पी आरम्भी, उद्यमी आदि हिमा का त्याग कर सकती है। मन, वचन, काय और कृत कारित अनुमोदनासे समस्त जीवों की सर्वश्रा हिसा का त्याग उनसे नहीं हो सकता । इलिया गाद,र: मी कर सत्राती।
आगे इमी वातको दिखलाते हैं।
ण हुँ अस्थि तेण तेसि इस्थिणं बुधिह संजमोद्धरणं । संजमधरणेण विणा हु मोक्खो तेण जम्मेण ॥ ९५ ॥ न ह्यस्ति सेन तासां स्त्रीणां द्विविधसंयमधारणम् ।। संयमधारणेन विना नहीं मोक्षस्सेन जन्मना ।। ९५ ।।
अर्थ- संयम दो प्रकारका होता है एक प्राणिमयम और दुसरा इन्द्रिय सयम । असत स्थावर समस्त जीवों की रक्षा करना किसी भी जीव का घान न करना प्राणिमयम है और समस्न इन्द्रियों को वश में
चक्रिसूहलभत कृष्णप्रमत्कटभूभताम् । म्कन्धावारसाहेषु प्रस्रवोच्चार भूमिषु ।। शुक्रसंघाणकश्लेष्मकर्णादन्तमलेषु च । अत्यन्ताशुचि देहेपु सद्यः सम्मूर्छयन्ति ये ।। भूत्वा धनांगुलासंख्यभागमात्रशरीरकाः । आशु सश्यन्त्यपर्याप्तास्ते स्युः सम्मच्छिमा नराः ।।
अर्थ-- चक्रवर्ती, हलधर नारायण आदि वडे २ राजाओं के स्कन्धा वार में मलमूत्रके स्थानों में शुक्र (वीर्य) कफ, नाकका मल, कर्ण दन्त आदिक मलमे तथा अत्यन्त अपवित्र शरीर में शीघ्र ही सम्मर्छन जीव उत्पन्न हो जाते है। उन जीवों का शरीर घनांगल के असंख्यातवें भाग मात्र होता है 1 वे अप्राप्तिक होते है तथा सम्मन्छेन मनुष्य होते है वे उत्पन्न होकर शीघ्र ही मर जाते है ।