________________
मान-संग्रह
जल बरिसणबा पाई गमणे भगे य जम्म छम्मासं । अच्छंति णिराहारा काओस्सग्गेण छम्मासं ॥ १२१ ।। जलवर्षायां जातायां गमने भग्ने च यावत् षण्मासम् । तिष्ठन्ति निराहाराः कार्योत्सर्गेण षग्मासम् ॥ १२१ ।।
अर्थ- जब वर्षा ऋतु आ जाती है और मुनियों का गमन करना बंद हो जाता है उस समय बे जिन कल्पी महा मनि छह महीने तक निराहार रहते है और छह महीने तक कायेंत्सर्ग बारण कर किसी एक ही स्थानपर खडे रहते है।
भावार्थ- उनका उत्तम संहनन होता है । अस्थि आदि सब बनमय होती है । इमलिये उनमे इतनी शक्ती होती है।
एयारसंगवारी एआई धम्मसुक्कझागी य । 'वत्तासेस कसाया मोण बई कंदरावासी ।। १२२ ।। एकादशांगधारिणः एते धर्म शुक्ल ध्यानिनश्च । त्यक्ताशेषकषाया: मौनव्रताः कन्दरावासिनः ।। १२२ ॥
अर्थ-वे जिन कल्पी महामनि ग्यारह अंग के पाठी होते है, धर्मध्यान वा शक्लध्यान मे लीन रहते है, समस्त कषायों के त्यागी होते है मौनव्रत को धारण करनेवाले होते है और पर्वतों की गुफा कंदराओ में
बहिरंतरगंथचुवा णिपणेहा णिप्पिहा य जइबइणो । जिण इव विहरति सदा ते जिगकप्पे ठिया सवणा || १२३ !! वाह्याम्सन्तरप्रन्थस्युत्ता निःणे हा निस्पृहाश्च यतिपतयः । जिना इव विहरन्ति सदा ते जिनकल्पे स्थिताः श्रमणाः ।। १२३ ।।
अर्थ- वे जिन कल्पो महा मुनि वाहय आभ्यंतर समस्त परिग्रहों के त्यागी होते है, स्नेह रहित परम वीतराग होते है और समस्त इच्छाओं से सर्वथा रहित होते है। ऐसे बे यतीश्वर महामुनि भगवान जिनेन्द्र देव के समान सदा काल विहार करते रहते है। इसलिये वे जिन कल्पी मुनि कहलाते है। .
आगे स्थविर कल्पी मुनियों का स्वरूप कहते है ।