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भाव-संग्रह
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अर्थ- यदि शंकाकार इस प्रकार कहते हो तो इसका उत्तर यह में फि यदि मनु के समान ही स्तियों का जीव है तो धीवरी वेश्याएं आदि महा हिंसा करने वालो स्त्रियों के भी जीव है इसलिय बे समस्त स्त्रियां भी मोक्ष प्राप्त कर लेगी।
भावार्थ- यदि जीव होने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसा मानते हो तो फिर महा पाप करने वाले जीव भी मोक्ष प्राप्त कर लेंगे नथा स्त्रियों को भी जीव होने से ही मोक्ष की प्राप्ति मानते हो तो धीवरी वेश्याएँ आदि दिन रात महा पाप उत्पन्न करने वाली स्त्रियां भी मोक्ष प्राप्त करलेंगी 'परंतु ऐसा होना असंभव है ।
आगे यही बात दिखलाते हैं ।
तम्हा इत्थी पज्जय पडुच्च जोबस्स पडि दोसेण 1 जाओ अमब्ज कालो तम्हा तेसि ण णिस्वाणं ।। ९८॥ तस्मात्स्त्रीपर्यायं प्रतीत्य जीवस्य प्रकृतिदोषेण |
जातः अभव्यकाल: तस्मात्तासां न निर्वाणम् ।। ९८ ॥
अर्थ- अतएव स्त्री पर्याय को लेकर प्रकृति के दोषसे जीवका अमव्यवाल प्राप्त हो जाता है इसलिय स्त्री को मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सकती।
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भावार्थ- रत्नश्रय के व्यक्त होने की योग्यता को भत्र्यकाल बहते हैं। स्त्रियों के शरीर में अनेक समच्छेन मनुष्य प्रति समय उत्पन्न होते और मरने है इसीलिय स्त्रियों के पूर्ण संयम की प्राप्ति नहीं होती और इसलिये उनको मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती।
आगे म.क्ष की प्राप्ति किन्हें होती है सो दिखलाते हैं। अइ उच्चमसंहणणो उसमपुरिसो कुलग्गओ संतो। मोक्लस्स होइ जग्गो णिग्गत्थो धरिय जिलिंगो ।। ९९ ।। अत्युत्तमसंहननः उत्तम पुरुषः कुलागतः सन् । मोक्षस्य भवति योग्यो निर्ग्रन्थो धृतजिनलिंगः ॥ ९९ ।।