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भाव-संग्रह
अर्थ जब वह श्रोत्रियों के द्वारा मारा जाता है तब वह अपनी भाषा मे शब्द कहता है अर्थात वह कहता है कि यह सब मेरा ही बनाया हुआ है मैंने ही पहले किसी यज्ञ में पशुओं को मारा था इसलिये ऐस ही यज्ञ में अब मैं मारा जाता हूँ। इस प्रकार बेद के कहे अनुसार यह जीव अनेक प्रकार की दुर्गतियों मे प्राप्त होता है और फिर फिर मर कर नरक जाता है ।
इस प्रकार वह इस संसार में महा दुःख भोगता रहता है। इय विलवंतो हृष्णह गलयं मुहनासरंध संधिता । भक्ति सोत्तिएहि विहिण बहुवेय वतेहि ॥ ६१ ॥ इति विलपन् हन्यते गलितं मुखनासिकारन्धं बुध्वा । भक्ष्यते श्रोत्रियः विधिना बहुवेदविद्भिः ।। ६१ ।।
पशु
अर्थ - इस प्रकार अनेक वेदों को जाननेवाले श्रोत्रिय लोग उस के नाक और मुख के छिद्रों को बंद कर देते हैं और फिर जो पशु विलाप करता है और उसके मुख नाक के छिद्रों से रुधिर निकलता है ऐसे उस पशु को वे लोग कथित की विधि के अनुसार मार कर खा जाते हैं ।
अस विदरीयं कहियं मिच्छत पावनारणं विसमं । जो परिहरइ मनुस्सो सो पावइ उत्तमं ठाण ।। ६२ ।।
इति विपरितं कथितं मिथ्यात्वं पावकारणं विषमम् । यः परिहरति मनुष्यः स प्राप्नोति उत्तमं स्थानम् ।। ६२ ।।
अर्थ - इस प्रकार जो यह विपरित मिथ्यात्व महा पाप का कारण
है और अत्यन्त विषम है उसका स्वरूप कहा । जो मनुष्य इस विपरित मिथ्यात्व का सर्वथा त्याग कर देता है वही जीव स्वर्गादिक के उत्तम स्थान प्राप्त कर सकता है ।
इस प्रकार विपरित मिथ्यात्व का स्वरूप कहा | एयंतमिच्छविद्विषद्धो एयंत जय समालको ।
एयंते खणियसं मण्णव जं लोय मज्भम्मि || ६३ ||