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पश्चात भक्ति पूर्वक अपने शिर पर गंधोदक को धारण करें उसके बाद केशर, चंदन आदि सुगंधित पदार्थों से जितेंद्र प्रतिमा का अभिषेक करे ।
पूर्वक
जिनेन्द्र भगवान अभिषेक विधि:--
आशुत्य स्नपनं विशोध्य तविलां पीठयां चतुष्कुम्भयुक् । कोणायां सकुशश्रियां जिनपति न्यस्यान्तमाप्येष्टदिक् । नीरज्याम्बुर साज्य दुग्धदधिभिः सिक्त्वा कृतोद्वर्तन सिक्तं कुम्भजलेस्य गन्धसलिलै: सम्पूज्यनुत्वा स्मरेत ॥२३ ।। ( षष्ठ अधिकार सागर वर्मामृत )
अभिषेक करने की प्रतिज्ञा करके जहां पर भगवान का अभिषेक करना है वहां की भूमि की विशुद्धि करके चतुष्कुंभ से युक्त हैं कोणा जिनकी ऐसी तथा जिस पर भी लिखा हुआ है तथा कुश रखा हुरा है ऐसी पीठिका पर ( सिंहासन ) जिनेन्द्र भगवान को स्थापित करके आरती उतारकर इष्ट दिशा मे अर्थात पूर्व दिशा में स्थित होकर जल, फलरस घृत, दुग्ध, दधि के द्वारा अभिषेक किया है उद्वर्तन अर्थात चंदन का अनुलेपन करके चारों कोण के कलशों से तथा सुगन्धित जल से अभिषेक करे । तथा जल - चन्दनादि अष्ट द्रव्य से पूजा करके और मित्य बन्दनादि विधि से नमस्कार करके अपने हृदय में भगवान को विराजमान करके अपने शक्ति के अनुसार भगवान का ध्यान करें व जप करें।
कुन्वते अभिसेयं महा विभूदीहि ताण देविदा | कंचन कलसगदेहिं विमल जलेहि सुगंधेहि ।। १०४
( तिलोयपण्णति ।
देवेन्द्र महान विभूति के साथ इन प्रतिमाओं का सुवर्ण कलशों में भरे हुए सुगन्धित निर्मल जल से अभिषेक करते है ।। १०४ ।।
कुंकुम कप्पूरेहि चंदन कालाहि अण्णेहि । ताणं विलेवणाई ते कुते सुगन्धेहि ॥ १०५ ॥
(तिलोयपणत्ति )