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मन्निवेष ( आकृति ) भाब के अनुरुप है ऐसे अरिहंत विश्व का निर्माण । करें।
सिद्ध प्रतिमा शद्ध एवं प्रातिहार्य से रहित होती है आगमानुसार । आचार्य, उपाध्याय एव साधुओं की प्रतिमाओं का भी निर्माण कर । जिनेन्द्र पूजा विधि:
___ द्रव्य सहित भाव पूजा:- लोभ कषाय के उदय के कारण धात्रक सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर नहीं पाता है इसलिये वह परिग्रहधारी है । परिग्रह के अपर अशक्ति ही बंध का कारण है।
" रत्तो बंधयि कम्म मुंदि जीवो विराग सम्पण्णो "
इस सिद्धांतानुसार बाह्य बस्तु में जो आशक्ति है वह बंध का! कारण है और वैराग्यभाव, निर्मो भाव विमुक्ति का कारण है । वैराग्य भाव को प्रगट करने के लिये लोभ कषाय परित्याग पूर्वक द्रव्य पूजा सहित भाव पूजा करे । श्राकक कषायवान, इच्छावान, कामीभोगी होने । के कारण उसका मन निरालम्बन ध्यान और पूजा में स्थिर नहीं हो । सकता है । यदि स्थिर होता है तो वह काम भोगों के लिये बाह्य द्रव्यों का आवलपवन क्यों लेता है ? परिग्नह संचय क्यों करता है ? वाह्य परिग्रहों के हानि वृद्धि में सुख-दुःख का अनुभव करता है ।
इसलिये आचार्य ने द्रव्य सहित भाव पूजा करने के लिये कहे है:द्रव्यस्य शुद्धि मधिगम्य यथानुरुपं
भावस्य शुद्धिधिकामधिगन्तुकामः । आलन्दनानि विविधान्यवलम्ब्य वल्गन
भूतार्थ-या-पुरुषस्य करोमि यशम् ।। ११ ।। मै यथायोग्य द्रव्य भाव शुद्धि पूर्वक विभिन्न अवलम्बन को लेकर परमपूज्य. परमआराध्य, वीतराग सर्वज्ञ भगवान का भूतार्थ यज्ञ (पूजा) करता हूँ।
द्वेधापि कुर्वतः पूजां जिनानां जितजन्मनाम् । न विरले नये लोके दुर्लभ वस्तुपूजितम् ।। १५ ।।
( अध्याय १२ अमित गति श्रावकाचार )