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सुख
कि पिएण बहुणा तीसु बिलाएसु किं विज सोक्खं । पूजा फलेण सव्वं पाविज्ज णत्थि संदेहो || ४९३ ।। अधिक कहने से क्या लाभ है, तीनो ही लोकमे जो कुछ भी है वह सब पूजाके फल से प्राप्त होता है। इसमे कोई सन्देह नहीं है । एकापि समर्थे जिनभक्तिदुर्गति निवारयितुम् । पुण्यानि च पूरयितुं दातुं मुक्तिश्रियं कृतिनः || ८ ॥ ( पूज्यपाद समाधिभक्तिः )
एकही परम जिनभक्ति भक्त का समस्त दुर्गतियों का निवारण करने के लिये सातिशय पुण्य को संपादन करने के लिये एवं मोक्ष पदवी देने के लिए समर्थ होता है ।
देवाविदेव चरणे परिचरणं सर्वदुःखनिर्हरणम् ।
कामदुहि कामदाहिनी परिचिनु यादावृतो नित्यं ॥ ११९ ॥ ( रत्नकरंड )
The worshipping of the feet of the Deva of devas (Holy Tirthankara) the bestower of desired good and the consaner of Cupid's Shat1s, is the remover of all kinds of Pain (For this reason it) should be performed A reverently every day,
श्रावक को आदर से युक्त होकर प्रतिदिन मनोरथों को पूर्ण करने वाले और काम वेदना को भस्म करने वाले इन्द्रादिक द्वारा बंदनीय अरहंत भगवान के चरणों में समस्त दुःखों को दूर करने वाली भगवान
की
करें f
पूजा
संसार
संसार है उल्टा यामे सम्यक् सार नहीं । अमृतामति से विष क्षरें हैं यशोधर अयश फैलाई
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एकत्व
दो में हं बंधन विवाह, दो मे हो संसार । एकत्व में सब नशे, पाये सच्चिदानन्य सार ॥
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