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१०१ समाधान:"पडिवज्जदु सामण्णं जदि इच्छदि दुकावं परिमोक्खें" || २०१॥
(प्रवचनसार) यदि सपूर्ण दुःख भे प्रष्ट रुप से विमुक्त होना चाहते हो तो आमा य दीक्षा को अंगीकार करो । अन्यथा मोक्ष नहीं मिल सकता है।
णिच्चेल पाणिपत उवळ परमजिगरिदेहि । एक्को वि मोक्ख मम्मो सेसाय अमरगया सन्वे ।। १० ।
(अष्टपाहुइ ) परम जिनेन्द्र देव द्वारा प्रतिपादित अचेलकत्व एवं पाणिपात्र स्वरूप को प्राप्त करो। क्योकि ये ही प्रकृष्ट मोक्ष का प्रकृष्ट मार्ग है शेष मार्ग उन्मार्ग है, मिथ्या मार्ग है।
द्रव्यस्य सिद्धी चरणस्य सिद्धिः तव्यस्य सिद्धि चरणस्य सिद्धौ । बध्येति कर्मा विरताः परेऽपि द्रव्याविषई चरणं चरंतु ॥१३॥
( अमृतचन्द्रटीका ) द्रव्य की सिद्धी में चरण फ्री सिद्धी है । और चरण की सिद्धी में ज्य को सिद्धी है ज्ञान में आत्मविशुद्धि होती है उससे विवक प्रगट होता है हेय को त्याग करता है, उपादेय को ग्रहण करता है, बाह्यद्रव्यों से उपेक्षा भाव धारण करता है । आत्म स्वरुप को जानने के बाद ज्ञानी आत्म स्वरूप से विरोध कार्य अर्थात आचरण नहीं करता है बाह्य कम से विरक्त होकर आत्मशुद्धि के लिन चारित्र पालन करता है । जब तक
नहि नहि अमतं अहिंसा समं क्वचित्
नहि नहि भोजन सुज्ञान समं क्वचित । नंहि नहि व्यापार सुध्यान समं क्वचित
नहि नहि सुधीरः मुमुक्षसमं क्वचित् ।। ९ ॥ विनय सम ने नोति स्वाध्याय समं तपः
स्वरुचि समं स्वाद: प्रेम समान बन्धः । नक्षमा समं शस्त्रं लोम समानं पापं
धर्म्य समान शक्तिः त्रैलोक्पेनान्य अन्य ।। १० ।।