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यतादि अनिवार्य है । जो महाव्रतादि आजीवन पालन किया जाता है। उसे यम कहते है। सामायिकादि अल्पकालावधि होने से यम बहलाते।
मूलगुणेसु बिसुद्धे वंदित्ता सव्व संजदे सिरसा ।। इह पर लोग छिदत्थे मूलगणे कितइत्सामि ॥ १ ॥
( मूलाचार ) सि. न. बमुनन्दी टीकाकार इह शब्दः प्रत्यक्षबचनः परशब्द उपरतेन्द्रिय-जन्म वचन: लोक शदः । सुरेश्वरादि वचनः । इह च परश्चेहपरी तोच तो लोको च इह पर लोको । ताभ्यांतयोर्वा हित सुरेश्वर्यपूजा सत्कार चित्त निवृत्तिफलादि तदेवार्थः प्रयोजनं फलं येषां ते इहपरलोक हितार्थास्तान् इह लोक परलोक सुरे- | श्वर्यादि निमित्तान् ।
इहलोके पूजा सर्व जनमान्यतां गस्तां सर्वजनमैत्रीमावादिके व लभते मूलगुणानाचरन्, परलोक च सुरश्वयंतीर्थकरत्वं चक्रवर्ती बल देवादिकत्वं सर्वजनकान्त-तादिकं च मूलगणानाचरन् लभते इति । मूल. गुणान् सर्वोधर गुणधारतां गतानाचरणविशेषान् ।
'इह शब्द प्रत्यक्ष को सूचित करने वाया है पर' शब्द इन्द्रियातीत जन्म को कहनेवाला है और 'लोक' शब्द देवों के ऐश्वर्य आदि का वाचक है।
हित ' शब्द मे सुख, ऐश्वर्य पूजा सत्कार और चित्त की निवृत्ति । फल आदि कहे जाते हैं और · अर्थ ' शब्द से प्रयोजन अथवा फल वित्र. क्षित है । इस प्रकार से इहलोक और परलोक के लिये अथवा इन उभय लोकों में सुख ऐश्वर्य आदि रुप ही है प्रयोजन जिनका, वे इहलोक पर हितार्थ कहे जाते है । अर्थात ये मुल गण इहलोक और परलोक मे सख । ऐश्वर्य आदि के निमित्त है। इन मूलगुणों का आचरण करते हुए जीव इस लोक में पूजा, सर्वजन से मान्यता गुरुता ( वडप्पन ) और सभी जीवों में मैत्री भात्र आदि को प्राप्त करते है तथा उन मूलगुणों को धारण करते हुए परलोक में देवों के एश्वर्य, तीर्थकर पद, चक्रवर्ती, बलदेव, आदि के पद और सभी जनों मे मनोज्ञता, प्रियता आदि प्राप्त