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dom Similarly a person with karmic bondage, even if h3 has the knowledge of the extent, the nature, the duration, and the strength of the karmic bondage,does not get liberation ( by this mere knowledge i but he gete complete liberation if pure in heart -289
As one bound in shackles geta release only on breaking the shacklos, so also the self attaionse emrin - cipation only by breaking ( Karmic ) bondage 292
जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति:- ज्ञानन्नपि यदि बंत्रच्छेद न करोति तदा न मुच्यते तेन कर्म बंध विशेषेणामुच्यमानः सन् पुरुषो बहुतर कालेऽपि मोक्षं न लभते ।। २८९ ।।
यथा बंधन बद्धः कश्चित्पुरषो रज्जुबंधं श्रृंखला बंधं काष्ठि निगल बंवा कमपि बंधदित्वा कमपि बंधं द्दित्वा कमपि मित्वा कमपि मुक्तवा स्वकीय विज्ञान पौरुष बलेन मोक्षं प्राप्नोति । तथा जीवोऽपि वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञान । युधेन बन्धं हित्वा द्विधाकृत्वा भित्वा विदार्य मुक्त्वा छोडयित्वा च निज शुद्धात्मोपर्लभ स्वरुप मोक्षं प्राप्नोतीति ॥ २९२ ॥
कोई एक पुरुष धातु निर्मित श्रृंखला से बंधन होकर पडा है, वह उस श्रृंखला का वर्ण, स्वभाव, गुण धर्म के बारे में जानता है, मानता है और मनन चितवन भी करता है, तो भी तब तक उस बंधन से मुक्त नहीं हो सकता है, जब तक वह उस बंधन को छेदन, भेदन, खण्डन नहीं करेगा । उसी प्रकार संसारी जीव कर्म रूपी बंधन में पड़ा है विषय
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अधम्मो
अण्णाणं दुष्ठचारिय विसदियो एयंत पक्कवाई |
सपर उय लोयझाणी सुहसंति विध्धकर हवई अधम्मो || ७ ||
आदा धम्मो
के णासेण सगदोसो मोहो णात्थि निश्चयेण | ले णासेण धम्मो होदि हू णिच्चयेण ॥ ८ ॥
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