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म जानता है, मानता है, और बंधन से मुक्त होने के लिये चिंतन मनन भी करता है, परंतु जब तक कर्म बंधन को नष्ट करने के लिये दुख पुरुषार्थ रूप क्रिया नहीं करेगा, वह पुरुष बहुकाल तक मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता है । जैस उज ( रस्सी), लोह, स्वर्ण, काष्ठ रूप बंधन को तोडकर फोडकार, खोलकर, नष्ट कर अपने विज्ञान और गृहपार्थ के बल से उस बंधन से मुक्त हो सकता है। उसी प्रकार मुमुक्षु वीर भी स्वविज्ञान, पुरुषार्थ रूपी वीतराग निविकल्प स्वसंवेदन ज्ञान के बल से उग बंधन को छेदकर, भेदकर, खोलकर, तोडकर, नष्ट कर, विदारगा कर अपने शुद्धात्मा के उपलम्भ स्वम्प मोक्ष को प्राप्त करता है, वहीं परम पुरुषार्थ है ।
विना पुरुषार्थ मोक्ष नहीं होता, केवल नियति को मानना, परम पुरुषार्थ का तिरस्कार करना, अवहेलना करना, नकार करना है। इसलिय एकान्त नियतिवाद घोर मिथ्यात्व है. शिथिलाचार भ्रष्टाचार ! का पोषण है । यदि नियति से सब कुछ होता है तो धनसम्पत्ति के लिये व्यापार, पुत्र उत्पत्ति के लिये विवाह, रोग निवारण के लिये औषध सेवन, ज्ञानार्जन के लिये विद्यालय जाना, शास्त्र अध्ययन, प्रवचन, शिबिर आदि की क्या आवश्यकता है ?
इस प्रकार सम्पूर्ण मिथ्यात्व के कारण बस्तु स्वरूप का यथार्थ श्रद्धान एवं आत्म स्वरुप का विपरीत श्रद्धान होने से मिथ्यात्व संसार का मूल कारण है, कर्म बंध का प्रधान कारण है, अधर्म का आधार है, आत्म पतन के लिये मुल हेतू है । सिथ्यात्व में बंध :"मिश्या दर्शनाऽविरतिप्रमाद कषाय योगाबंध हेतवः" ।।
मिथ्यादर्शन, अबिरति, प्रमाद, कषाय और योग बंध के हेतु है व्योंकि इन कारण पूर्वक ही बंध होता है । "त एते पञ्च बंध हेतवः रामस्ता ब्यस्ताश्च भवन्ति । तद्यथा मिथ्यादण्टः पञ्चापि समृदिता बंध हेत.बो भवन्ति यं पांचों स्वतंत्र स्वतंत्र बघ के हेतु है और समुदाय से भी बंक के कारना है जैसे मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में पांचों बंध के लिये