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श्रद्धान न करे तो उस समय से वह जीव मिथ्यादृष्टी होता है, क्योंकि गणवरादि के द्वारा कथित सूत्र का श्रद्धान न करने से जिनाज्ञा का उल्लंघन सुप्रसिद्ध है । इसी कारण वह मिथ्यादृष्टी है ।। २८ ॥
भयवसण मल विज्जिव-संसार सरीर भोग णिविष्णो । अल्छ गुणंग समगो वंसण सुद्धो हु पंचगुरु भत्तो ।। ५ ।।
( रयणसार) जो सप्त भय रो रहित, सप्त व्यसन से रहित, सम्यग्दर्शन के २५ || अतिचार मल दोष से रहित है, संसार शरीर भोग से विरक्त है। सम्यग्दर्शन के ८ अंग सहित है एवं पंच परमेष्ठी को जो भक्ति करता है वह शुद्ध सम्यग्दृष्टी है।
__ सम्यग्दर्शन पामान्य से एक प्रकार है सराग सम्यग्दर्शन और दुसरा वीतराग सम्यग्दर्शन अपेक्षा दो प्रकार है । १) उपशम २) क्षयोपशम ।। ३) क्षायिक की अपेक्षा तीन प्रकार का है।
१) आज्ञा २) मार्ग ३) उपदेश ४) सूत्र ५) बीज ६) संक्षेप ७) विस्तार ८) अर्थ ९) अवगाढ १०) परम अवगाढ भेद से मम्यक्त्व १० प्रकार भी है । उसमें से प्रथम सम्यक्त्व आज्ञा सम्यग्दर्शन है। यथा
आज्ञासम्यक्त्व मुक्तं यदुत विचितं वीतरागाजयैव । स्यक्त ग्रन्थ प्रपंच शिवममृतपथं श्रद्दधन्मोहशान्तेः ।।
( आत्मानुशासन ) दर्शनमोहनीय के उपशांत होने से ग्रंथ श्रवण के विना केवल । दीतराग भगवान की आज्ञा से ही जो तत्व श्रद्धान उत्पन्न होता है उस का आज्ञा सम्यग्दर्शन कहते है क्योंकि उसका श्रद्धान होता है सर्वज्ञ हितोपदेशो भगवान कभी भी अन्यथा उपदेश नहीं करते है जो भी कथन करते है वह सत्य ही कथन करते है।
सूक्ष्म जिनोदितं तत्त्वं हेतुभिनव हन्यते । आता सिद्ध तु तग्राह्यं नान्यथावादिनो जिना ॥ ५ ॥