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6 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
जैन मन्दिर (यह नाम नागरी में भी लिखा है) कहलाता है। जिस गली में यह मन्दिर है वह जैन गली कहलाती है। रास्ता संकरा है। जैन मन्दिर के बजाय अब यह मन्दिर संगीत पाठशाला अधिक कहलाता है क्योंकि अब इसके बाहरी भाग में उपयंक्त पाठशाला लगती है। मन्दिर चार-पाँच सौ वर्ष पुराना है और पत्थर का बना हुआ है। वेदी साधारण है। मन्दिर पर शिखर नहीं है। उसमें तीन ओर मेहराबदार बरामदे हैं और बीच में खुला आँगन है। इसमें मूर्तियाँ इस प्रकार हैं-संगमरमर की लगभग दो फुट की पार्श्वनाथ मूर्ति, इसी प्रकार की लगभग चार फुट ऊँची पार्श्वनाथ की एक और मूर्ति, एक ही फलक पर लगभग डेढ़ फुट ऊँची पार्श्व प्रतिमाएँ, गोमटेश्वर की मूर्ति तथा महावीर एवं एक चौबीसी जिसके मूलनायक चन्द्रप्रभ हैं । एक आले में आदिनाथ की मूर्ति भी स्थापित है । क्षेत्रपाल और पद्मावती की भी मूर्तियाँ हैं।
हुम्नाबाद में इस समय केवल एक जैन परिवार रह गया है जिसके पास मन्दिर के लिए आय का अन्य कोई साधन नहीं है। बहुत व्यथित मन से वे दूसरे ध्वस्त मन्दिर को भी दिखाते हैं जो वर्तमान मन्दिर के पास ही है। बताया जाता है कि इस मन्दिर की कुछ प्रतिमाएँ तेरहवीं शताब्दी की हैं।
हुम्नाबाद को प्राचीन समय में जयसिंहपुरा कहा जाता था। शायद इसे चौ लुक्य नरेश जयसिंह ने बसाया था।
कल्याणी (आधुनिक बसवकल्याण)
मार्ग एवं अवस्थिति
हुम्नाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. पर 9 स्थित है । यह राजमार्ग हैदराबाद को पूनाबम्बई से जोड़ता है। यदि पर्यटकों की बस गुलवर्गा की ओर न जाकर इसी राजमार्ग पर हुम्नाबाद से उमर्गा (महाराष्ट्र) की ओर 22 कि. मी. बढ़े तो उसे एक तिराहा मिलेगा जहाँ से कल्याणी या बसवकल्याण 6 कि. मी. है। इस स्थान को कल्याण या कल्याणाबाद भी कहा जाता है।
ऐतिहासिक महत्त्व
बसवकल्याण जाने वाली सड़क के तिराहे पर शहर की म्युनिसिपल कौंसिल ने तीन भाषाओं में एक बड़ा-सा बोर्ड लगाया है। उसमें भी भगवान महावीर का स्मरण किया गया है। नागरी लिपि में लेख इस प्रकार है
"देखो ! कल्याणरूपी ज्योति प्रज्वलित है जिसमें भक्तिरसरूपी तैल है। चहुँ ओर शिवप्रकाश व्याप्त है। श्री अल्लम प्रभु की पावन-भूमि कल्याण-श्री अक्क महादेवी"
"बारहवीं शताब्दी में जगज्ज्योति बसवेश्वर ने कल्याण की पुण्यभूमि में सत्य, अहिंसा