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धर्मस्थल | 187
कल्याणकारी परम्पराएँ प्रारम्भ कीं ।
श्री रत्नवर्मा हेग्गडे (1955 से 1968 ई.) का समय धर्मस्थल के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा । उन्होंने यात्रियों के लिए अनेक सुविधाएँ जुटाईं। इनमें आधुनिक सुविधाओं से युक्त गंगा, कावेरी और नर्मदा नामक सुसज्जित धर्मशालाएँ, बारह हॉल और परिवारों के लिए छोटे भवनों का निर्माण शामिल है । साधु-संन्यासियों के लिए भी उन्होंने 'संन्यासी कट्टे' नामक भवन बनवाया । उजिरे नामक स्थान पर उन्होंने कला, विज्ञान और वाणिज्य मंजुनाथेश्वर कॉलेज तथा धर्मस्थल में भी हाई स्कूल का निर्माण करवाया ।
स्व. रत्नवर्मा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य 1967 ई. में यहाँ के लिए कारकल में बाहुबली की 39 फीट ऊँची प्रतिमा का निर्माण प्रारम्भ करवाना था । अपने जीवन काल में वे यह कार्य पूर्ण नहीं कर सके । वेणूर और कारकल की बाहुबली प्रतिमाओं के महामस्तकाभिषेक में भी 504 कलशों से अभिषेक कर उन्होंने अपने श्रद्धा-सुमन बाहुबली को अर्पित किए थे । श्री रत्नवर्मा ने अनेक सर्वधर्म और साहित्य सम्मेलनों का भी आयोजन किया । शृंगेरी के जगद्गुरु ने उन्हें 'राजमर्यादा' और कोनियार मठ के स्वामी ने उन्हें 'धर्मवीर' पदवी से विभूषित किया था । वर्तमान धर्माधिकारी
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धर्मस्थल के वर्तमान धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगडे का पदाभिषेक अपने पिता के निधन पर बीस वर्ष की आयु में 1968 ई. में हुआ । उस समय से ही उन्होंने अपने पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने और इस क्षेत्र की उन्नति में अपने को एकाकार कर दिया है। बाहुबली की मूर्ति का कारक में निर्माण उन्होंने जारी रखा । बंटवल नामक स्थान पर ' आदीश्वर स्वामी बसदि' का कार्य भी उन्होंने पूरा कराया । यूरोप, अमेरिका और पूर्वी एशिया (थाईदेश, सिंगापुर ) आदि में जाकर धर्म- प्रभावना की है। अनेक स्थानों के पंचकल्याणक भी उन्होंने करवाए हैं। इसके साथ ही अनेक मन्दिरों, चर्चों, मस्जिदों को मुक्तहस्त दान दिया है । विवाह आदि पर अत्यधिक खर्च से गरीब लोगों को बचाने के लिए हेग्गडेजी ने सामूहिक विवाह कार्यक्रम प्रारम्भ किए हैं जिनके अन्तर्गत विभिन्न जातियों के युवक-युवतियों के पाँच सौ से अधिक विवाह एक साथ एक ही दिन में सम्पन्न होते हैं । अनेक स्कूलों, कॉलेजों तथा अस्पतालों को इनकी ओर से मुफ्त सहायता दी जाती है । धर्मस्थल के इस दानवीर परिवार की ओर से चार प्राथमिक स्कूल, दो हाईस्कूल, ग्यारह कॉलेज (इंजीनियरिंग, व्यवसाय प्रबन्ध भी) तथा नौ अन्य संस्थान विभिन्न स्थानों में संचालित किए जा रहे हैं। यात्रियों के लिए नये गेस्ट हाउस बनवाए गए हैं।
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श्री हेगडेजी ने अनेक उत्सव प्रारम्भ किए हैं जिनमें यहाँ का 'लक्षदीपोत्सव' प्रसिद्ध है । यह कार्तिक मास की एकादशी से अमावस्या तक चलता है । अन्तिम दिन चन्द्रनाथ - स्वामी की समवसरण - पूजा की जाती है। हेग्गडेजी अनेक विवादों का निपटारा भी करते हैं और उनका निर्णय सभी को मान्य होता है। पूजा-विधानों के अनेक नियम हैं । उन नियमों के अन्ततया हेगडेजी की अनुमति से ही यहाँ विशेष पूजा-अनुष्ठान किए जा सकते हैं । मनौतियाँ मनाने वाले हेगडेजी के भार के बराबर चावल या अन्य सामग्री का दान भी करते हैं । इसके