Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 403
________________ मैसूर / 291 मैसूर बंगलोर से सड़क या रेलमार्ग द्वारा मैसूर पहुँचना सबसे अधिक सुविधाजनक है। रेलमार्ग से बम्बई का सीधा सम्बन्ध मैसूर से है । बम्बई से आनेवाली गाड़ियाँ मिरज तक बड़ी लाइन पर आती हैं और वहाँ से मीटर गेज की दूसरी गाड़ी यात्रियों को बंगलोर तक ले जाती हैं। कुछ गाड़ियों में मैसूर का डिब्बा लगता है ( पणजी से भी मीटर गेज की गाड़ी का डिब्बा भी मैसूर के लिए लगने लगा है) जो अरसीकेरे में कटकर दूसरी गाड़ी में लगकर हासन है और वहाँ से मैसूर की गाड़ी में लगता है। कुल मिलाकर इसमें कुछ असुविधा ही होती है । यात्रियों को यह स्मरण रखना चाहिए कि मैसूर छोटी लाइन पर ही है और मैसूर से बंगलोर तक भी छोटी लाइन है किन्तु इस मार्ग पर अच्छी, तेज और सुविधाजनक एक्सप्रेस गाड़ियाँ भी चलती हैं । रेलमार्ग से बंगलोर से मैसूर 139 कि. मी. की दूरी पर है । सड़क मार्ग द्वारा भी मैसूर और बंगलोर की दूरी 140 कि. मी. है और जैसा कि पहले कहा जा चुका है, दोनों शहरों के बीच हर बीस मिनट के बाद एक्सप्रेस बसें चलती हैं जो बीच में कहीं नहीं रुकती हैं । मैसूर बसों द्वारा कर्नाटक एवं अन्य राज्यों के साथ जुड़ा हुआ है । श्रवणMaria के लिए भी यहाँ से सीधी बस मिलती है। कर्नाटक सरकार की पर्यटक बसें भी आसपास के दर्शनीय स्थानों की यात्रा कराती हैं । इनमें से एक बस श्रवणबेलगोल, हलेबिड और बेलूर की यात्रा एक ही दिन में करा देती है । गैर-सरकारी पर्यटक बसें भी खूब चलती हैं । यहाँ का रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड दोनों एक दूसरे से दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर हैं । मैसूर में बाहर जाने वाली बसों का स्टैण्ड अलग है जो कि यहाँ के घण्टाघर से कुछ दूरी पर है। शहर में चलने वाली बसों का स्टैण्ड यहाँ के प्रसिद्ध राजमहल और घण्टाघर के पास है । सबसे पास का हवाई अड्डा बंगलोर ही है । मैसूर एक साफ़-सुथरा, शान्त और गरिमामय स्थान है । स्वतन्त्र भारत में सम्मिलित होने से पहले यहाँ ओडेयर शासक राज्य करते थे । कुछ लोगों को यह बंगलोर से भी अच्छा शहर लगता है। जैन मन्दिर शहर के अन्य दर्शनीय स्थलों से पहले यहाँ के मन्दिरों का परिचय प्राप्त कर लिया जाए । 1. श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर – यात्री जब बाहर आने-जाने वाली बसों से बाहर आता है तो उसे थोड़ी ही दूर ( एक किलोमीटर से भी कम ) पर चन्द्रगुप्त रोड मिलता है । उसी पर 'श्री एम. एल. वर्धमानय्य जैन बोर्डिंग होम' है । संगम सिनेमा के सामने इस बोडिंग होम (जैन छात्रावास) में उपर्युक्त मन्दिर है । उसके अहाते में प्रवेश करते ही ऊपर की मंज़िल में पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा दिखाई देती है। मूर्ति एक प्रतीक के रूप में है न कि प्रतिष्ठित । ऊपर की मंज़िल में मन्दिर है । उसमें पीतल मढ़ी वेदी है और द्वार पर भी पीतल मढ़ा है। मन्दिर छोटा-सा है और मूलरूप से विद्यार्थियों के लिए निर्मित है । उसमें काले पाषाण

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