Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 417
________________ मडिकेरि ज़िला / 305 शान्तिमन्त्रन्यास, अंगन्यास, केवलज्ञान महाहोम, महास्नपनाभिषेक, अग्रोदक प्रभावना, और कलश प्रभावना। दान का उपयोग इन उत्सवों में किया जाए-प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया से होने वाले महोत्सव , अष्टाह्निका पर्व, श्रावण पूर्णिमा उत्सव, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अनन्त कलश प्रभावना और महा आराधना। कार्तिक मास में कृत्तिकोत्सव और माघबहुल चतुर्दशी को जिनरात्रिमहोत्सव। मडिकेरि जिला मैसूर से पश्चिम की ओर स्थित इस जिले की सीमा केरल के कण्णूर (Cannanore) प्रदेश को छूती है। मडिकेरि नया नाम है । वैसे यह प्रकृतिरम्य, हरा-भरा प्रदेश कुर्ग (Coorg) क्षेत्र या कुर्ग रियासत के नाम से भी जाना जाता था। कोडगु भी मडिकेरि का नाम है। कोडगु या कुर्ग प्रसिद्ध प्राचीन भूगोलशास्त्री श्री नन्दलाल डे के अनुसार कोडगु या कुर्ग का प्राचीन नाम कोलगिरि था। कन्नड़, तमिल और तेलुगु में 'कोल्लि (Kolli)', या 'कोल्लै (Kollai) का अर्थ वन-प्रदेश, घाटी या शुष्क भूमि होता है। चूंकि यह वन-प्रदेश सुन्दर घाटियों से युक्त है यह देखते हुए यह नाम सम्भव हो सकता है। कुर्ग में प्राप्त 888 ई. के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि यहाँ सर्वनन्दि नामक एक जैनाचार्य थे। मर्करा अविनीत (कोंगणि द्वितीय) का मर्करा ताम्रपत्र बहुत प्रसिद्ध है। यह प्राचीन ताम्रपत्र संस्कृत और कन्नड़ में है। यह मर्करा के खजाने से प्राप्त हुआ था। इसमें चेर राजाओं की वंशावली दी गई है। उसके अनुसार अविनीत महाराजाधिराज कदम्बकुलसूर्य कृष्णवर्म की प्रिय बहन के पुत्र थे। इन्हीं से देशीयगण कोण्डकुन्द-अन्वय के चन्दणन्दि भट्टारक को तलवन नगर के श्रीविजय जिनालय के लिए बदणेमुप्पे नाम का गाँव प्राप्त कर अकालवर्ष पृथ्वीवल्लभ के मन्त्री ने भेंट किया था। मुल्लूरु ___ कोडगु जिले के इस स्थान की प्रसिद्धि पन्द्रहवीं शताब्दी तक एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र के रूप में थी। किसी समय इस स्थल में कोंगाल्ववंश के राजा राज्य करते थे। यहाँ शान्तीश्वर बसदि, पार्श्वनाथ बसदि और चन्द्रनाथ बसदि नामक तीन जिनमन्दिर थे। यहाँ कन्नड़ में लगभग 1050 ई. का एक शिलालेख पार्श्वनाथ बसदि के प्रांगण में एक

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