Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 416
________________ 304 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) जैन साहित्य में व्यापक रूप से प्रचलित 'जीवंधर चरित' में हेमांगद देश के राजा जीवंधर द्वारा भगवान महावीर के समवसरण में जाने और दीक्षित होने की कथा प्राचीन काल से चली आ रही | कुछ विद्वान हेमांगद देश की स्थिति कर्नाटक में मानते हैं। वैसे हेमांगद का शाब्दिक अर्थ 'सोने का बाजूबंद' होता है। कौन जानता है कि स्वर्ण से सम्पन्न इसी प्रदेश को मांगद सम्बोधित किया जाता रहा हो ! चित्रदुर्ग जिले के जैन स्थल आन्ध्रप्रदेश की सीमा से लगे इस जिले में भी जैनधर्म अच्छी स्थित में था । जो कुछ सीमित जानकारी शिलालेखों आदि से मिलती है, उससे इस तथ्य की पुष्टि होती है । बाले हल्ली चालुक्यसम्राट द्वितीय जगदेकमल्ल के शासनकाल में 1145 ई. में बम्मिशेट्टि ने यहाँ पर पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण कराके उसके संरक्षण हेतु कुंदकुंदान्वय देशीयगण पुस्तकगच्छ के मलधारिदेव को कुछ दान दिया था । बेतरु वर्तमान समय के प्रसिद्ध नगर दावणगेरे से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान पर सिद्धेश्वर मन्दिर के पार्श्वभाग से प्राप्त शिलालेख के अनुसार रामदेव भूपाल के पादपद्मोपजीव तथा पद्मसेन मुनि के शिष्य कूचिराज ने अपनी पत्नी लक्ष्मीदेवी का स्वर्गवास होने पर यहाँ 'लक्ष्मी जिनालय' का निर्माण 1271 ई. में कराया था और उसमें पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठापित थी। इस अवसर पर अनेक भक्तों ने पान-सुपारी के बगीचे भी दान में दिए थे। यह जिनालय मूलसंघ सेनगण पोगलगच्छ मुनि की देख-रेख में था । होल्लके रे यहाँ के सेट्टर नागप्प से एक ताम्रपत्र 1154 ई. को प्राप्त हुआ था । उसमें उल्लेख है कि यहाँ पर उस समय का शान्तिनाथ का एक ध्वस्त मन्दिर था । लेख में यह सूचना भी है कि पारिश्वसेन भट्टारक स्वामी ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके लिए जो दान रुक गया था उसके लिए यहाँ के सामंत प्रताप नायक को प्रार्थनापत्र भेंट सहित दिया गया था । उस समय भट्टारकजी ने हिरियकेरे के पीछे की जमीन, लोगों से प्राप्त भेंट सभी करों से मुक्त करवा के देव पूजा और गुरुओं के आहार आदि की व्यवस्था के लिए दान में दीं थीं । उपर्युक्त ताम्रपत्र से कुछ विधियों और उत्सवों की भी सूचना मिलती है । जीर्णोद्धार के समय के विधान- वास्तुविधि, नान्दी मंगल, ध्वजारोहण, भेरी-ताडन, अंकुरार्पण, बृहत्

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