________________
गोम्मटगिरि | 297
प्रवेशमण्डप के बाद दोनों ओर छोटे-छोटे मण्डप हैं। उनके बीच में सीढ़ियाँ हैं और फिर लगभग 15 फुट चौड़ा और 25 फुट लम्बा खुला आंगन है। उसके बाद मूर्ति के दोनों ओर मण्डप हैं जो कि कुहनी तक ऊँचे हैं । मूर्ति दोनों मण्डप के बीच में खड़ी है। उसके पीछे एक शिला भी है किन्तु उससे मूर्ति को आधार नहीं मिल रहा है। प्रवेशमण्डप और स्तम्भ प्राचीन हैं किन्तु अन्य सभी निर्माण-कार्य नवीन हैं। इस मन्दिर का व्यवस्थित रूप श्री चन्द्रय्या और उनके सहयोगियों के प्रयत्नों का परिणाम है । मूर्ति में मस्तक पर भी गारे का एक आच्छादन जीर्णावस्था मे था। उसे पुरातत्त्व विभाग के परामर्श पर हटा दिया गया है, अन्यथा मूर्ति को क्षति पहुँच सकती थी । मूर्ति के सामने अश्वारोही ब्रह्मदेव की मूर्ति भी थी जो अब नहीं है, केवल अश्व बचा
काले पाषाण से निर्मित यह मूर्ति 18 फुट ऊँची है। मूर्ति की मुख-मुद्रा प्रशान्त किन्तु कुछ हास्य लिये हुए है। बाहुबली के दोनों पैरों और भुजाओं पर माधवी लता दो बार लिपटी हुई दिखाई गई है । मस्तक पर सुन्दर धुंघराले (छल्लेदार) बाल अंकित हैं। मूर्ति की एक विशेषता यह है कि बाहुबली के दोनों हाथ सों की फणावली (पूरे चौड़े फणों) को छू रहे हैं। ये सर्प बाँबियों से भी निकलते हुए नहीं दिखाए गए हैं । सर्पो को हाथों के नीचे दबाने का अर्थ यह हो सकता है कि बाहुबली ने अपनी तपस्या के समय जहरीले सों के रूप में अष्टकर्मों का नाश किया था। सर्पकुण्डली हाथ की अँगुलियों से टखने तक अंकित की गई है। मूर्ति पर शारीरिक गठन सुन्दर ढंग से उत्कीर्ण है। नाभि से नीचे एक गहरा वलय है। उससे नीचे एक और वलय है जो स्वाभाविकता का आभास देते हैं।
यह मूर्ति और कहीं से बनवाकर यहाँ प्रतिष्ठित की गई जान पड़ती है। आश्चर्य यही है कि इतनी संकरी और लगभग सीढ़ीनुमा इस पहाड़ी पर इतनी वजनी मूर्ति किस प्रकार चढ़ाई गई होगी।
____मूर्ति के दोनों ओर जो मण्डप हैं, उनका उपयोग मस्तकाभिषेक के समय किया जाता है। 'मस्तकाभिषेक पूजा' नामक इस वार्षिक उत्सव या अभिषेक का आयोजन पर्यषण-क्षमावणी के बाद सितम्बर मास में एक घोषित तिथि को किया जाता है। इसमें मैसूर तथा आसपास के काफी संख्या में जैन-अजैन लोग भाग लेते हैं। लगभग पाँच-छह हजार व्यक्तियों की उपस्थिति हो जाती है। मेला एक प्रकार से पिकनिक का रूप भी धारण कर लेता है।
पहाड़ी सीढ़ियाँ जहाँ प्रारम्भ होती हैं वहाँ दाहिनी ओर प्राचीन चरण हैं और बायीं ओर मुनि निर्मलसागर जी के चरण हैं । वे यहाँ एक दिन के लिए आये थे किन्तु प्रकृतिरम्य स्थान को देखकर यहाँ लगभग एक सप्ताह रहे।
पहाड़ी पर से आस-पास का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिखाई देता है। सामने ही कृष्णराजसागर दिखाई देता है और सागरकट्टे का रेलवेपुल भी। बड़ी शान्त जगह है। दो-तीन मील के घेरे में आस-पास गाँव भी हैं। लगभग पाँच-छह किलोमीटर की दूरी पर भारत स 'भारत इलेक्ट्रॉनिक उद्योग' बन रहा है। इससे इस क्षेत्र की और भी उन्नति हो जाएगी।
___कर्नाटक सरकार ने 'श्री गोम्मटगिरि क्षेत्र के लिए 810 एकड़ भूमि आरक्षित कर दी है--इस आशय का बोर्ड लगा है।