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194 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
2. मानतुंगाचार्य 'भक्तामरस्तोत्र' में कहते हैं
"बुद्धिस्त्वमेव विबुधाचित-बुद्धिबोधात्त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रय-शंकरत्वात् । धातासि धीर शिवमार्ग-विधैविधानात्
व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमोऽसि ।" (हे भगवन् आप ही बुद्ध हो क्योंकि आपकी बुद्धि गणधर आदि विद्वानों द्वारा पूज्य है। आप ही शंकर हैं क्योंकि आप अपनी प्रवृति तथा उपदेश से तीनों लोकों में सुख की (शांति की) सृष्टि करते हैं। आप विधाता हैं क्योंकि आपने मुक्तिमार्ग का विधान किया है। आप सबसे उत्तम होने के कारण पुरुषोत्तम हैं।) 3. 'मेरी भावना' में प्रत्येक भव्य कहता है
"बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो।
भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो॥" 4. 'समणसुत्त' में एक आचार्य की यह भावना देखिए
"सयं सयं पसंसंता, गरहतां परं वयं ।
जो उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया ॥" _ (जो पुरुष केवल अपने मत की प्रशंसा करते हैं तथा दूसरों के वचनों की निंदा करते हैं और इस तरह अपना पाण्डित्य प्रदर्शन करते हैं वे संसार में मजबूती से जकड़े हुए हैं-दृढ़ रूप से आबद्ध हैं।)
तोधर्मस्थल जैनधर्म के अनेकान्तवादी दृष्टिकोण, सर्वधर्मसमवन्य, सहनशीलता, सर्वोदय और समदर्शिता की युगानुयुग में खरी उतरी उदात्त भावनाओं का आधुनिक जीवन्त प्रतिनिधि क्षेत्र है।
यहाँ से बेलूर की ओर प्रस्थान करना चाहिए।
मंगलोर जिले के अन्य जैन स्थल
बप्पनाड (Bappanad)
यहाँ कोट कोरि (Kota Kori) नामक बसदि है जिसके सामने एक मानस्तम्भ भी है। मन्दिर का संरक्षण कार्य हुआ है। कारकुर (Karkur)
यहाँ कठाले नामक स्थान पर ढलुआ छत का एक बड़ा जैन मन्दिर है।