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हलेबिड | 213 सर्पकुण्डली पैरों तक प्रदर्शित है । मूर्ति का एक हाथ कुछ खण्डित लगता है (यह 1133 ई. की मूर्ति है) । गर्भगृह में कुछ नागफलक हैं । पार्श्वनाथ की ही सात फणों, मकर-तोरण, यक्ष-यक्षी और चंवर के चिह्नों से सज्जित एक मूर्ति और है। गर्भगृह की छत पर कमल का अंकन है।
गर्भगृह से बाहर के प्रकोष्ठ में या नवरंग में दाहिनी ओर ब्रह्म यक्ष की मूर्ति है जिसका मुकुट ऊँचा है। यक्ष के दो हाथों में नारियल और गदा है। बाईं ओर कूष्माण्डिनी देवी द्राक्षलता से संयुक्त है। देवी के हाथों में सामान्य पदार्थ हैं । एक हाथ खण्डित है।
_ 'विजय पार्श्वनाथ' बसदि में छत की कारीगरी भी देखने योग्य है। छत में चार स्तर हैं। पहले स्तर में आठ दिक्पाल उत्कीर्ण किए गए हैं। दूसरे और तीसरे में चौबीस तीर्थंकर मूर्तियाँ अंकित हैं । दूसरे स्तर में केवल आठ तीर्थंकर हैं और तीसरे में सोलह, इस प्रकार कुल मिलाकर
स तीर्थंकर हो जाते हैं। सभी तीर्थंकरों के आसपास यक्ष-यक्षी और भक्तजन उत्कीर्ण हैं। सबसे ऊपर पाँच फणों से युक्त धरणेन्द्र का उत्कीर्णन है । एक ओर चार हरिण और मुनि का केश-लोंच दिखाया गया है तो दूसरी ओर एक स्त्री नृत्य कर रही है, उसके आसपास वादकवृन्द है। इसी प्रकार युद्ध के लिए समुद्धत हाथी-घोड़े और समुद्र में देवता प्रदर्शित हैं।
___ उपर्युक्त मन्दिर में आठ देव-कुलिकाएँ या देवकोष्ठ हैं-मूर्ति के दोनों ओर तीन-तीन तथा प्रवेशद्वार के आसपास दो। इन पर द्रविड शैली के शिखर अनेक स्तरों वाले हैं किन्तु सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर भी उत्कीर्ण हैं।
कसौटी पाषाण के अदभत स्तम्भ-प्रवेश करने पर जो हॉल आता है वह नवरंग है। उसमें उत्तम पॉलिश वाले कसौटी पाषाण के चौदह स्तम्भ हैं । स्तम्भों की सामान्य विशेषताएँ हैं : (1) पतली-पतली मौक्तिक मालाएँ-सूक्ष्म कारीगरी का नमूना, (2) करीब डे इंच की पट्टी में पुष्पावलि बारीकी देखने लायक, (3) लगभग तीन इंच के गोल घेरों में आकृतियाँ और (4) स्तम्भों के वलय इतने पतले और गोल मानों चूड़ियाँ पिरो दी हों। वैसे स्तम्भ पाँच भागों में संयोजित हैं । उनके नीचे के भागों में नर्तक, वादक और देवियाँ उत्कीर्ण हैं । बारह स्तम्भों पर उत्तम तथा पूरा पॉलिश है। उनमें हमारा प्रतिबिम्ब दिखता है। कुछेक स्तम्भों का परिचय इस प्रकार है-(1) प्रवेशद्वार के पास दाहिनी ओर खड़े होकर यदि हाथ ऊपर किए जाएँ तो सामने वाले स्तम्भ में हाथ दिखाई देते हैं। (2) उसके पास के स्तम्भ में पूरा शरीर दिखाई देता है, हाथ अलग दिखते हैं । (3) बाईं ओर चौथी पंक्ति के दूसरे स्तम्भ में हाथ दोनों तरफ दिखाई देते हैं। अर्थात् ऊपर और नीचे दोनों ओर हाथ दिखाई देते हैं । (4) स्तम्भों के नीचे के चौकोर भाग को बजाने से संगीत की ध्वनि निकलती है। यहाँ तक कि पेन्सिल छुआ देने से भी मधुर ध्वनि आती है। (5) स्तम्भों के गोल या छल्लेवाले भाग को दो अंगुलियों से बजाने पर भी संगीतमय ध्वनि निकलती है । कुल 12 स्तम्भों से संगीत की ध्वनि उत्पन्न होती है।
उपर्यक्त मन्दिर में फल इकटठा करती एक शालभंजिका या सुन्दरी भी उत्कीर्ण है। उसके वस्त्रों का सूक्ष्म अंकन देखने लायक है ।
'विजय पार्श्वनाथ बसदि' का शिखर नहीं है । गर्भगृह के बाहरी भाग पर द्रविड़ शैली का उत्कीर्णन है।
प्रबलित पाषाण (reinforced) का प्रयोग भी इसकी एक विशेषता है। ऐसा लगता है कि