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श्रवणबेलगोल / 229
करने पर उन्हें किसी जैन साधु ने बताया कि ये दाँत यह सूचित करते हैं कि उनका पुत्र राजा बनेगा । माता-पिता धार्मिक थे । वे नहीं चाहते थे कि षड्यन्त्रों से भरा राजा का जीवन उनका पुत्र भोगे । इसलिए माता ने चाणक्य के दाँत घिसवा दिए। पुनः साधु ने उन्हें बताया कि राजयोग की जड़ (दाँतों की) तो मौजूद है । राजा न सही, उनका पुत्र किसी को राजा बनाकर राजशक्ति का उपयोग करेगा ।
बालक चाणक्य धीरे-धीरे अनेक विद्याओं में पारंगत हो गया । समय आने पर यशोमती नामक कन्या से उसका विवाह हो गया। एक बार उसकी पत्नी अपने भाई के विवाह में मायके गई। वहाँ उसकी बहिनों एवं अन्य लोगों ने उसे गहनों, अच्छे वस्त्रों से हीन देखकर उसकी हँसी उड़ाई। पत्नी ने सब बातें चाणक्य को बतायीं। लोगों को शिक्षा देकर अपनी जीविका चलाने वाले चाणक्य भी दुखी हुए। पत्नी ने सलाह दी कि वे पाटलिपुत्र जाएँ, वहाँ का राजा बहुत दान देता है । वहाँ पहुँचकर चाणक्य ने अनेक पण्डितों को शास्त्रार्थ में पराजित किया । उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर धननन्द ने उसे अपनी दानशाला का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया । चाणक्य कुरूप और अभिमानी थे । बैठने के स्थान को लेकर राजा की दासी ने उनका अपमान कर दिया और युवराज भी उनसे नाराज हो गया। बस इस पर उन्होंने यह प्रतिज्ञा की
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“ सकोशभृत्यं ससुहत्पुत्रं सबलवाहनम् । नन्दमुन्मूलयिष्यामि महावायुरिव द्रुमम् ॥”
(जिस प्रकार आँधी बड़े-बड़े वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकती है उसी प्रकार मैं भी नन्दवंश को उसके कोश, भृत्य, मित्र, पुत्र, सैन्य तथा वाहन सहित उखाड़ फेकूंगा ।) यह प्रतिज्ञा कर उन्होंने पाटलिपुत्र छोड़ दिया ।
चाणक्य की प्रतिज्ञा की एक कथा और भी प्रचलित है। किसी समय मगध पर सीमा - वर्ती किसी राजा ने आक्रमण किया । नन्द राजा ने कावी नामक मन्त्री को आदेश दिया कि वह आक्रमणकारी राजा को धन देकर वापिस लौटा दे। कावी ने ऐसा ही किया। बाद में राजा ने कोश खाली देखकर कावी को अन्धकूप में डाल दिया और उसे केवल सत्तू तथा पानी देने लगा । तीन वर्ष बाद फिर आक्रमण हुआ तो नन्द राजा ने फिर कावी को इसी कार्य में लगाया । लेकिन कावी मन-ही-मन बदला लेने की बात सोचता रहता था । एक दिन उसने चाणक्य को नुकीली घास को जड़ से इसलिए उखाड़ कर फेंकते देखा कि उसने उसके पैर में घाव कर दिया था। कावी ने उसे अपने कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति समझा। वह राजभवन ले गया और अवसर पाकर एक दिन उसने दानशाला में चाणक्य का योजनाबद्ध तरीके से अपमान करा दिया । परिणाम स्वरूप चाणक्य ने नन्दवंश को उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा कर डाली। उसी समय चन्द्रगुप्त से उसकी भेंट हो जाती है । वे दोनों घोड़ों पर दूर चले जाते हैं। सीमावर्ती राजा उन्हें ढूँढ़ लेते हैं और उनकी धन संचय आदि में मदद कर नन्दवंश का अन्त करवाते हैं ।
पहली कथा के अनुसार, चाणक्य घूमते-घामते, चन्द्रगुप्त के गाँव पिप्पलीवन पहुँचते हैं । वहाँ वे गाँव के मुखिया के यहाँ ठहरते हैं । उसकी गर्भवती पुत्री को यह इच्छा होती है कि वह चन्द्रमा का पान करे । चाणक्य ने यह कठिन इच्छा पूरी करने के लिए एक थाली में पानी भरवाया और एक आदमी को छप्पर पर इस हिदायत के साथ चढ़ा दिया कि वह फूस की