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श्रवणबेलगोल | 265
एरडुकट्टे बसदि के पोछे दो फुट के चरण हैं।
* मज्जिगण बसदि-सम्भवत: मज्जिगण नाम के किसी व्यक्ति ने इसे बनवाया होगा। शिलालेख के अभाव में इसका निर्माण-काल निश्चित नहीं किया जा सकता । एक चबूतरे पर निर्मित यह बसदि 32 फुट लम्बी और 18 फुट चौड़ी है। इसके प्रवेशद्वार के सिरदल पर पद्मासन तीर्थकर हैं । मूलनायक अनन्तनाथ की लगभग चार फुट ऊँची कायोत्सर्ग प्रतिमा है जिस पर मकर-तोरण की संयोजना है । मूर्ति के पादमूल में यक्ष और यक्षी स्थापित हैं। नवरंग में गोलाकार स्तम्भ हैं । बाहरी दीवाल पर पुष्प और पूर्णकुम्भ का सुन्दर अंकन है।
इससे अगला मन्दिर 'शासन बसदि' है । चामुण्डराय बसदि और शासन बसदि के बीच में दाहिनी ओर के मण्डप में भी एक शिलालेख है।
शासन बसदि-इस मन्दिर के बायीं ओर मन्दिर से सटा एक शिलालेख (कन्नड़ में शासन) है। शायद उसी कारण यह बसदि 'शासन बसदि' कहलाती है । सन् 1137 ई. के इस शिलालेख में कहा गया है कि होय्सलनरेश विष्णुवर्धन के सेनापति (दण्डनायक) गंगराज ने अपनी वीरता के परितोषिक स्वरूप विष्णुवर्धन से 'परम' नाम का गाँव प्राप्त किया था। इस गाँव को उन्होंने अपनी माता पोचलदेवी तथा पत्नी लक्ष्मीदेवी द्वारा निर्मित श्रवणबेलगोल के मन्दिरों के लिए दान कर दिया। इन्हीं गंगराज ने गोमटेश्वर का परकोटा भी बनवाया था एवं अनेक स्थलों पर जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। धन की रक्षा के लिए शासन में कहा गया है कि जो कोई इस दान-द्रव्य में हस्तक्षेप करेगा वह कुरुक्षेत्र एवं बनारस में सात करोड़ ऋषियों, कपिला गायों और वेदज्ञ पण्डितों के घात का भागी होगा । शिलालेख को उकेरने वाला शिल्पी वर्धमानाचारी था।
'शासन बसदि' की लम्बाई 55 फुट और चौड़ाई 26 फुट है। गर्भगृह में आदिनाथ की पाँच फुट उन्नत प्रतिमा छत्रत्रयी, मकर-तोरण एवं कीर्तिमुख से सज्जित है। वह पाँच सिंहों के आसन पर प्रतिष्ठित है। दोनों ओर पुरुष चँवरधारी छत्र तक ऊँचे हैं और ऊँचा मुकुट पहिने हैं। बाहर गोमेद यक्ष और यक्षी चक्रेश्वरी की मूर्तियाँ हैं। सभामण्डप में छह स्तम्भ हैं। प्रतिमा पर लेख से ज्ञात होता है कि यह 'इन्द्रकुलागृह' गंगराज ने बनवाया था।
कत्तले बसदि-चन्द्रगिरि पर यह सबसे बड़ा मन्दिर है। इसकी लम्बाई 124 फुट और चौड़ाई 40 फुट है। इतने लम्बे-चौड़े मन्दिर में केवल एक ही दरवाज़ा है। उसके अतिरिक्त न कोई खिड़की है और न ही कोई झरोखा। परिणाम-मन्दिर में अँधेरा। और कन्नड़ में अँधेरे को 'कत्तले' कहते हैं। इसलिए इस मन्दिर का नाम ही पड़ गया 'कत्तले बसदि' अर्थात् अँधेरेवाला मन्दिर। इसमें एक प्रदक्षिणापथ भी है जो किसी अन्य मन्दिर में नहीं है। गर्भगह में आदिनाथ की लगभग चार फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति पाँच सिंहों के आसन पर स्थापित है और मकरतोरण से अलंकृत है। ऊँचे मुकुटवाले चँवरधारी भगवान के मस्तक से ऊपर तक अंकित हैं। बाहर यक्ष-यक्षी भी हैं। विशाल सभामण्डप के स्तम्भों पर मौक्तिक मालाओं का उत्कीर्णन है। कुल 22 स्तम्भ हैं। छत में कमल भी उत्कीर्ण है।
इस मन्दिर के बाहर एक दीवाल भी है। उसके कारण जो एक ही दरवाज़ा है उससे भी पूरा प्रकाश अन्दर नहीं आ पाता (किन्तु अब गर्भगृह के भगवान के दोनों ओर की दीवाल