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264 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
प्रवीण, कुशल राजनीतिज्ञ, परम जिनभक्ता रानी ने यह मन्दिर 1123 ई. में बनवाया था। उसने और भी जिनालय बनवाए थे। यह बसदि 69 फुट लम्बी और 35 फुट चौड़ी है। गर्भगृह में शान्तिनाथ की पद्मासन मूर्ति पाँच फुट ऊंची है। उस पर तीन बड़े छत्र हैं और ऊँचे मुकुट वाले चँवरधारी हैं । पाँच सिंहों के आसन और मकर-तोरण की भी संयोजना है। गर्भगृह के बाहर यक्ष किम्पुरुष और यक्षी महामानसी की मूर्तियों का फलक लगभग चार फुट ऊँचा है। छत पर कमल का उत्कीर्णन है । नवरंग में आठ स्तम्भ हैं जिन पर सुन्दर पॉलिश है।
'सवतिगन्धवारण बसदि' के पास भी चार स्तम्भों का एक मण्डप है। उसमें चारों ओर शिलालेख है। इसी प्रकार बायीं ओर पट्टमहिषी शान्तलादेवी का शिलालेख है जिसमें ऊपर तीर्थंकर और चँवर हैं।
तेरिन बसदि-कन्नड़ में रथ को तेरु कहते हैं। मूलनायक बाहुबली के 70 फुट लम्बे और 26 फट चौड़े मन्दिर के सामने रथ के आकार जैसी एक रचना है। उस पर बावन जिनमूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं जो नन्दीश्वर की प्रतीक हैं । जो भी हो, यह रथाकार निर्मिति सामने होने के कारण इस बाहुबली मन्दिर का नाम 'तेरिन बसदि' पड़ गया। बाहुबली की मूर्ति लगभग चारफुट ऊँची है। रथाकार रचना पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार होय्सलनरेश के समय पोय्सलसेट्टि की माता माचिकब्बे और नेमिसेट्टि की माता शान्तिकब्बे ने नन्दीश्वर और बाहुबली मन्दिर दोनों को बनवाया था। बाहुबली की पाँच फुट ऊँची मूर्ति पर गोल घेरों में लताएँ बनी हैं । बाहुबली के हाथ और पैरों पर लताओं के दो वेष्टन (लपेट) हैं। सर्प या बाँबी आदि कुछ भी नहीं है। मूर्ति कमलासन पर स्थित है। छत पर कमल का उत्कीर्णन है । मण्डप में चार स्तम्भ हैं। इस मन्दिर में सर्वाह्न यक्ष और अम्बिका यक्षी की मूर्तियाँ भी हैं। मन्दिर पर शिखर है।
तेरिनबसदि के सामने या तो कमल के ऊपर बलिपीठ है या कोई मानस्तम्भ बनने से रह गया है। द्रविड शैली की इस रचना में 9 तल या स्तर हैं। छठे स्तर पर चारों ओर पद्मासन तीर्थंकर हैं।
शान्तीश्वर बसदि-ऊँचे स्थान पर बने इस मन्दिर में 21 सीढ़ियाँ चढ़कर जाना होता है। मन्दिर 56 फुट लम्बा और 30 फुट चौड़ा है। सीढ़ियों के बायीं ओर टेक (सपोर्ट) लगाए गए हैं ताकि चौकी को बचाया जा सके। मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ है। सीमेंट के भी कुछ नये स्तम्भ लगाए गए हैं। गर्भगृह में शान्तिनाथ की काले पाषाण की छह फुट के लगभग ऊँची मूर्ति है । फलक के पीछे हाथी पर इन्द्र-इन्द्राणी अंकित हैं। प्रतिमा के आस-पास यक्ष-यक्षी हैं। वे बाहर भी स्थापित किए गए हैं । मन्दिर का शिखर अन्य मन्दिरों की शैली के अनुसार द्रविड़ शैली का है। इस बसदि को गंगराज के ज्येष्ठ भ्राता बोम्मण के पुत्र एचिमय्य ने 1117 ई. में बनवाया था। उसने और भी अनेक स्थानों पर मन्दिर बनवाए हैं।
चन्द्रगिरि पर्वत के तीन ओर जलपूरित छोटे-छोटे कुण्ड हैं। एक ओर द्वार भी है। तेरिन बसदि के पीछे दो मण्डप हैं। एक में तीन शिलालेख हैं और दूसरे में एक । ये गंग-परिवार के सदस्यों तथा मुनि विद्यदेव को स्मृति में बनाए गए मण्डप में हैं। इनके निकट दो और मण्डप हैं । सन् 1145 ई. के मण्डप में पट्टमहिषी शान्तला की माता माचिकब्बे की समाधि (1131 ई.) का और दूसरे में उसके भाई बलदेव और सिंगिमय्य की मृत्यु का उल्लेख है। इसी प्रकार