________________
हासन ज़िले के अन्य जैन-स्थल / 281
हेरगु
हासन जिले के आलूर तालुक में स्थित इस स्थान पर भी एक प्राचीन ध्वस्त जैन मन्दिर है । उसका निर्माण होयसलनरेश नरसिंहदेव के सेनापति चाविमय्या की पत्नी जक्कव्बा ने 1155 ई. में कराया था। पार्श्वनाथ की एक मूर्ति भी प्रतिष्ठापित की थी। खण्डहर होते हुए भी यह अपनी सूक्ष्म कला के कारण आकर्षक है। होलेनरसीपुर
हासन-मैसूर रेलमार्ग पर स्थित इस स्थान में 1115 ई. में मुनि प्रभाचन्द्र के उपदेश से कोंगाल्वदेव ने 'सत्यवाक्य जिनालय' का निर्माण कराके होण्णेगडलु नामक गाँव दान में प्राप्त किया था, ऐसा शिलालेख से ज्ञात होता है। होनगेरी
इस स्थान में एक 'महावीर बसदि' है। उसमें भगवान महावीर की खड्गासन प्रतिमा के साथ केवल चैवर का अंकन है । इसी प्रकार एक फलक पर अन्य पाँच तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। सम्भवतः ये पाँच बालयति (वे तीर्थंकर जिन्होंने विवाह नहीं किया था) हों। होसहोल्लु (होसहल्ली)
यहाँ छत्रत्रयी से अलंकृत नेमिनाथ की पद्मासन प्रतिमा है। पाँच सिंहों के आसन पर प्रतिष्ठित इस मूर्ति के पास चँवरधारी मस्तक से ऊपर तक अंकित हैं । यक्ष-यक्षी भी प्रदर्शित. हैं। 1125 ई. में होय्सलनरेश विष्णुवर्धन के शासनकाल में शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव के श्रावक शिष्य नोलबि शेट्टि ने 'त्रिकूट जिनालय' का निर्माण कराया था तथा अनेक बाग-बगीचों के अतिरिक्त 'अर्हन् हल्ली' नामक ग्राम भी दान में दिया था। यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की भी सुन्दर प्रतिमा है । इस मन्दिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार भी हुआ है।
___ इस स्थान पर जक्कुलम्मा (?) का भी एक मन्दिर है। मर्कलि ___ यहां एक पंचकूट बसदि (अर्थात् पाँच गर्भगृहों का मन्दिर) है। उसमें आदिनाथ, सुपार्श्वनाथ, पुष्पदन्त, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं । यह बसदि भी होयसल काल की कलात्मक शैली की प्रारम्भिक स्थिति में बतायी जाती है। मन्दिर छोटा है फिर भी सामने से भव्य लगता है। उसके गर्भगृह में प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का अंकन है। चार भुजावाला गोमुख यक्ष भी उत्कीर्ण है । इसी प्रकार इसमें सोलह भुजाओं वाली चक्रेश्वरी यक्षिणी की मूर्ति (चित्र क्र. 110) भी दर्शनीय है।
उपर्युक्त स्थान शान्तिग्राम (हासन-श्रवणबेलगोल मार्ग) के पास स्थित है। यहाँ ग्राम के किले के अन्दर मन्दिर है। सन 1172 ई. में होय्सलनरेश वीरबल्लाल के मन्त्री बचिराज और उनकी पत्नी ने इसका निर्माण कराया था तथा द्राविड़ संघ के श्रीपाल विद्य के शिष्य