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282 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) वासुपूज्य सिद्धान्तदेव के चरणों में समर्पित कर दिया था। मगलूरु
हासन जिले का यह गाँव होय्सलनरेश के समय में एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र था। इस वंश के शासक विष्णुवर्धन के समय में यहाँ सात किले वाला (एव्वकोटे) जिनालय विद्यमान था। बारहवीं सदी में यहाँ नन्दिसंघ-पीठ था जिसके अधिकारी श्रीपाल विद्य के शिष्य वासुपूज्य थे।
शान्तिग्राम
इतिहास-प्रसिद्ध होय्सलनरेश विष्णुवर्धन की पटरानी शान्तला देवी (देखिए, हलेबिड प्रकरण) के नाम पर बसाया गया यह ग्राम हासन से श्रवणबेलगोल जानेवाले मार्ग (राजमार्ग क्रमांक 48) पर, सड़क के किनारे स्थित है। यहाँ वर्तमान में चार मन्दिर हैं जिनमें से एक जैन मन्दिर है । मन्दिर छोटा है । प्रवेशद्वार के सिरदल पर तीर्थंकर की मूर्ति है। आसपास सिंहों का अंकन है। भीतर तीर्थकर सुमतिनाथ की छत्रत्रयी से युक्त खड्गासन प्रतिमा के साथ यक्ष-यक्षिणी भी अंकित हैं। मकर-तोरण की सज्जा भी है। पार्श्वनाथ की नौ फणों से आच्छादित प्रतिमा भी है।
इस स्थान के 'केशव देवालय' से प्राप्त शिलालेख से ज्ञात होता है कि बारहवीं सदी में प्रभु हेग्गड़े वासुदेव के जिनभक्त पुत्र उदयादित्य ने सूरस्थगण के गुरु चन्द्रनन्दि के उपदेश से 'वासुदेव जिनमन्दिर' का निर्माण कराया था। इसके साथ ही ग्राम-निवासी होन्नशेट्टि और अन्य भक्तों ने तीर्थंकर सुमतिनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठापित की थी। अंगडि
यह स्थान इस समय यद्यपि चिक्कमंगलूर जिले में है और मूडिगेरे-सकलेशपुर मार्ग पर स्थित है तथापि हासन ज़िले के बेलूर और हलेबिड से इसका अत्यन्त निकट का सम्बन्ध होने के कारण यहाँ हासन जिले के अन्तर्गत कुछ परिचय दिया जा रहा है। यह बेलूर से लगभग 23 कि. मी. की दूरी पर स्थित है।
प्राचीन काल में इसकी ख्याति एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान के रूप में रही है । कुछ शिलालेखों से ज्ञात होता है कि 10वीं शताब्दी में यह एक प्रमुख जैन केन्द्र था। इस स्थान का प्राचीन नाम शशकपुर या सोसेवूर था।
अंगडि की सबसे अधिक प्रसिद्धि यहाँ पर होयसल राजवंश की स्थापना के कारण है। कर्नाटक और विशेषकर कर्नाटक में जैन धर्म के इतिहास में इस राजवंश का बहुत बड़ा योगदान रहा है । जैन धर्म से सम्बन्धित सबसे अधिक शिलालेख इसी वंश के राजाओं, सेनापतियों आदि के हैं। श्रवणबेलगोल के शिलालेखों में भी सबसे अधिक शिलालेख इस वंश से सम्बन्धित हैं। इस वंश के नरेश विष्णुवर्धन और पटरानी शान्तला तो अब इतिहास एवं साहित्य के विषय बन गये हैं।