Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 398
________________ 286 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) पास ही में स्थित चिकपेट में कुछ अच्छे होटल भी मिल जाएँगे। बंगलोर सोलहवीं शताब्दी में एक छोटा-सा स्थान था जिस पर येलहन्का प्रभु शासन करते थे। उन्होंने यहाँ 1537 ई. में यहाँ एक छोटा-सा शहर बसाया। विजयनगर के सम्राट ने यहाँ के केम्पगोडा सामन्त को बहुत-सी ज़मीन उपहार में दी थी। उसकी आय से केम्पगोडा ने इस शहर को बसाया और विकास किया । आज भी केम्पगोडा का नाम यहाँ मार्ग आदि के रूप में सुरक्षित है। उसके बाद यहाँ टीपू सुलतान का शासन हुआ और फिर मैसूर के राजवंश ओडेयर का। इनके समय में इस नगर ने खूब प्रगति की । स्वतन्त्र भारत में, इसके आस-पास वायुयान बनाने वाला कारखाना, टेलिफोन करखाना आदि एवं अनेक कार्यालयों के कारण, इस नगर का आशातीत विकास हुआ है । आज यह भारत के प्रमुख नगरों में से एक है। बंगलोर महानगरी को यात्रा पर निकलने से पहले हम परिचय प्राप्त करते हैं यहाँ के जैन मन्दिरों का। वृषभदेव दिगम्बर जैन मन्दिर एवं सोमंधर स्वामी दिगम्बर जैन मन्दिर रेलवे स्टेशन से बाहर सड़क पर आने पर दाहिनी ओर यदि आप देखें तो इस मन्दिर का शिखर दिख जाएगा। तात्पर्य यह कि यह मन्दिर रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड के बिलकुल पास करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर रंगस्वामी टेम्पल स्ट्रीट बलेपेट क्रॉस (चौराहा) पर स्थित है। इसका निर्माण भगवान महावीर 2500 वें निर्वाण महोत्सव के समय हुआ था। इसका एक दिगम्बर जैन ट्रस्ट है। मन्दिर बहुत भव्य है । वह लगभग पूरा का पूरा ही संगमरमर का बना है। मन्दिर की संगमरमर की चौखट पर सुन्दर कलाकारी है। नीचे की ओर द्वारपाल बने हैं। सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। उनसे ऊपर ऋषभदेव के आहार का गर्भगृह में आदिनाथ की लगभग पाँच फुट ऊँची प्रतिमा कमलासन पर विराजमान है। पंचधातु की पद्मप्रभ और महावीर स्वामी की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं। गर्भगृह से बाहर तीनों ओर संगमरमर के फ्रेम में बने आलों में चौबीस तीर्थंकर विराजमान हैं। __ ऊपर की मंज़िल में सीमंधर स्वामी का बहुत ही सुन्दर समवसरण है । उसमें गन्धकुटी में तीर्थंकर की चौमुखी प्रतिमा स्थापित है। (समवसरण में गन्धकुटी में कमलासन पर विराजमान होकर भगवान उपदेश करते हैं तो उनका मुख चारों तरफ हर किसी को दिखाई देता है। उसी की अनुकृति में चौमुखी प्रतिमाएँ बनाई जाती हैं। ) यहाँ के समवसरण की रचना संगमरमर से की गई है इसीलिए वह बहुत सुन्दर लगती है। समवसरण मन्दिर के प्रवेशद्वार के सिरदल पर कायोत्सर्ग तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। द्वार की चौखट में गोल घेरे संगमरमर के ही बने हैं। उनमें सोलह स्वप्नों का मनोहारी अंकन है। इसके अतिरिक्त द्वारपाल भी बनाए गए हैं। __ मन्दिर के तहखाने में स्वाध्याय-मन्दिर है। यह आधुनिक ढंग का बना है। उसमें लगभग 100 ताडपत्रीय ग्रन्थ और इतने ही हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । यहीं पर Jain Literature Research Centre भी है। यहीं पर वीतराग विज्ञान विद्यापीठ (परीक्षा बोर्ड) भी है। उसके द्वारा कर्नाटक राज्य

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