Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 386
________________ 278 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) ___ मंजुनाथ कल्याण मण्डप-धर्मस्थल के धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगड़े ने विवाह (कल्याण) तथा बड़ी सभाएं आयोजित करने में सुविधा की दृष्टि से इस विशाल भवन का निर्माण कराया है। इसमें रसोईघर, वर-वधू पक्ष के लोगों आदि के ठहरने के लिए कमरे हैं। । राजश्री गेस्ट हाउस--यह भी आधुनिक सुविधाओं से युक्त अतिथि-भवन है। निर्माणकर्ता हैं श्री ताराचन्द बडजात्या परिवार। : उपर्युक्त अतिथि-निवास आदि, जिनका निर्माण गोमटेश्वर सहस्राब्दी महोत्सव के अवसर पर हुआ है, इस तीर्थराज में ठहरने की आधुनिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं। । स्थानीय बस स्टैंड-यह पक्का बना हुआ है, उसके साथ एक केंटीन भी है। समयसारणी केवल कन्नड़ लिपि में है । अनेक स्थानों की बसें मिलती हैं । यहाँ से चन्नरायपट्टन के लिए बहुत-सी बसें हैं। - प्रवासी उपकार गृह-कर्नाटक सरकार का यह कैण्टीन मुनि विद्यानन्द निलय के ठीक पीछे है। - श्री महावीर दिगम्बर जैन धर्मशाला-यह श्री महावीर कुन्दकुन्द भवन के पास ही में स्थित है। ... जैन परिवार-श्रवणबेलगोल में लगभग सौ जैन परिवार हैं। अधिकांश खेती पर निर्भर हैं। इस तीर्थ के आसपास की भूमि पथरीली होने के कारण पैदावार कम होती है। अतः इन परिवारों को स्थिति अच्छी नहीं है। यदि कोई अच्छा उद्योग खुल जाए तो ये परिवार बड़े शहरों की ओर सम्भवतः नहीं जाएँ। . प्राचीन काल में अनेक दाताओं ने सिंचाई की समस्या को समझा और इसीलिए यहाँ के शिलालेखों में लगभग 50 सरोवरों या कुण्डों के निर्माण या जीर्णोद्धार के उल्लेख पाए जाते हैं । इन में जक्किकट्टे और चेन्नण्णा कुण्ड प्रसिद्ध हैं। जक्किकट्टे में पाषाण पर जिन-प्रतिमाएँ हैं। वार्षिक रथोत्सव ... एक बहुरंगी कार्यक्रम के रूप में श्रवणबेलगोल में प्रतिवर्ष रथ-यात्रा महोत्सव चैत्र शुक्ल पंचमी से वैशाख कृष्ण द्वितीया तक बड़ी धूमधाम से जैन और जैनेतर जनता के उल्लासपूर्ण एवं स्वैच्छिक सहयोग के साथ मनाया जाता है। इसका आरम्भ चैत्र मास की उपर्युक्त पंचमी से करने का कारण यह है कि इसी दिन गोमटेश्वर की महामूर्ति की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। - उत्सव का प्रारम्भ पंचमी के दिन ध्वजारोहण से होता है। उसके बाद भगवान की मूर्ति की शोभायात्रा सर्पराज, अश्व, देवेन्द्र और ऐरावत के रथों पर निकाली जाती है । इन दिनों उत्सवमूर्ति की पालकी जैनेतर लोग ही अपने कन्धों पर सहज भक्ति-भाव से उठाते हैं। . प्रसाद रूप में उन्हें नारियल भेंट किया जाता है। : पूर्णिमा के दिन अर्थात् 11वें दिन रथोत्सव की धूमधाम अधिक होती है। उस दिन सुबह 10 बजे ही रथ भण्डारी बसदि की परिक्रमा करता है। इस समय आधी दूरी तक जैनेतर रथ खींचते हैं और शेष आधी दूरी तक जैन लोग। इस प्रकार यह सभी सम्प्रदायों का: परम्परागत रथोत्सव हो जाता है।

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