Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 384
________________ 276 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) का चित्रण जिसमें एक मनुष्य को वृक्ष काटते हुए और कुछ मनुष्यों को उस पर चढ़े हुए दिखाया गया है (5) श्रवणबेलगोल के रथोत्सव का चित्र, (6) मैसूरनरेश का दशहरा-दरबार जिसमें राजा कृष्णराज ओडेयर दरबार में बैठे दिखाये गये हैं, (7) पार्श्वनाथ और कमठ सम्बन्धी सुन्दर चित्र, पाश्र्वनाथ के पहले काल से लेकर कमठ के उपसर्ग आदि तक के । एक चित्र में मन्त्रिगण कमठ के कदाचार की शिकायत करते दिखाये गये हैं, तो अन्य 5-6 चित्रों में कमठ को उसके कुकृत्यों के लिए दण्डित करते हुए चित्रित किया गया है। गर्भगृह की ओर के कुछ चित्र मिट-से गये हैं । अनुमान है कि ये चित्र 17वीं या 18वीं सदी में बनाए गये थे। मठ के भीतरी भाग के स्तम्भों पर भी सुन्दर नक्काशी है। उन पर नर्तकियों की आकर्षक मुद्राएँ उत्कीर्ण हैं । एक स्तम्भ के चित्रण में गाय बछड़े को दूध पिला रही है तो एक अप्सरा पैर में चुभा काँटा निकाल रही है। मठ के मन्दिर में तीन गर्भगृह हैं । उनके दरवाजों पर पीतल मढ़ा है और सिरदल पर कीर्तिमुख से अलंकृत पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं । गर्भगृहों में पीतल और पाषाण की कलात्मक मूर्तियाँ हैं । तीर्थंकर मूर्तियों में प्रभावली से सज्जित नेमिनाथ की पीतल की मूर्ति दर्शनीय है। पार्श्वनाथ की धातु मूर्ति भी कलात्मक है । नवदेवता, धर्मचक्र, श्रुतस्कन्ध, ज्वालामालिनी और कूष्माण्डिनी यक्षियों के अतिरिक्त, शारदा (सरस्वती) की भी भव्य मूर्तियाँ हैं। चौक की मुंडेर पर देवियों की मूर्तियों की सज्जा है। पीतल से ही निर्मित नन्दीश्वर एवं सम्मेदशिखर भी हैं। उपर्युक्त मन्दिर में कुछेक दुर्लभ मूर्तियाँ हैं । उनका दर्शन विशेष प्रबन्ध द्वारा कराया जाता है । इसे सिद्धान्तदर्शन कहा जाता है। जैन मठ के मन्दिर में ही भट्टारकजी की गद्दी है। वर्तमान भट्टारकजी का एक चित्र भी मठ में लगा है। यह उल्लेख किया ही जा चुका है कि मठ के पास ही एक नवीन भट्टारक-निवास बन गया है । उसी में वर्तमान भट्टारक जी निवास करते हैं । हमारा वन्दना-क्रम यहाँ समाप्त होता है। विशेष कार्यक्रम-चन्द्रप्रभ मन्दिर में विशेष आरती होती है, कभी-कभी साधारण उत्सव भी मनाया जाता है। प्रतिदिन शाम को सात बजे प्रवचन होता है । उसके बाद आरती होती है। इसमें स्थानीय श्रावक-श्राविका सम्मिलित होते हैं। समय-समय पर भट्रारक जी प्रवचन करते हैं। यात्रियों के अनुरोध पर भी वे प्रवचन करते हैं एवं पण्डितों से यहाँ शास्त्रचर्चा भी करते हैं। हर मंगलवार को कूष्माण्डिनी देवी की विशेष शृंगारपूर्वक आरती की जाती है। मठ के क्षेत्र में धर्मशालाएँ आदि कलुचत्र धर्मशाला-यह पुरानी धर्मशाला का नाम है । यह मठ से कुछ ही दूरी पर स्थित है। सरसेठ हुकमचन्द त्यागी निवास-इन्दौर के दानवीर स्व. सर सेठ हुकमचन्द जी की स्मृति में उनके पुत्र श्री राजकुमारसिंह द्वारा बनवाए गए इस शान्त निवास में दो कमरे, एक

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