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श्रवणबेलगोल / 275 होय्सलनरेश विष्णुवर्धन (बारहवीं सदी) के जैनों पर तथाकथित अत्याचारों के फलस्वरूप द्वारसमुद्र (हलेबिड) की धरती फटने, त्राहि-त्राहि मचने तथा श्रवणबेलगोल के भट्टारक चारुकीति पण्डिताचार्य द्वारा कलिकुण्ड आदि आराधना द्वारा जमीन पाटने सम्बन्धी जनश्रुति का उल्लेख किया जा चुका है। इसी प्रकार राजा बल्लाल के व्याधिग्रस्त जीव की रक्षा करने के कारण यहाँ के भट्टारक जी को 'बल्लालजीवरक्षक' उपाधि प्राप्त होने का भी कथन पहले किया जा चुका है। कुछ और विद्वानों का अनुमान है कि जैन मठ एक अच्छे गुरुकुल के रूप में, गोमटेश्वर महामूर्ति की दसवीं सदी में स्थापना से पूर्व भी विद्यमान था और वह बहुत प्राचीन संस्था है । जो भी हो, जैन मठ का भवन तीन-चार सौ वर्ष प्राचीन तो है ही। भवन बदलते, पुननिर्मित होते ही रहते हैं । अब इसी पुराने मठ के पास ही एक नवीन भट्टारक-भवन भी बन गया है।
प्राचीन जैन मठ भट्टारकजी का निवास और एक अत्यन्त सुन्दर जिनालय दोनों ही था।
___ यह मठ प्राचीनता, प्राचीन जैन ग्रंथों के संरक्षण, श्रवणबेलगोल के जागरूक प्रहरी के रूप में प्रसिद्ध है ही, इसकी सबसे अधिक प्रसिद्धि आकर्षक रंग-बिरंगे भित्ति-चित्रों, गर्भगृह की सुन्दर एवं कलापूर्ण मूर्तियों एवं सिद्धान्त-दर्शन के लिए भी है।
जैन मठ के बाहर एक खुला प्रवेशमण्डप या बरामदा है जिसमें चित्रकारी और नक्काशी (उत्कीर्णन) दोनों का अनूठा संगम है। सामने से ही दक्षिण-शैली का शिखर भी दिखाई देता है। इस मंडप के स्तम्भों का उत्कीर्णन उच्च कोटि का एवं विविधता लिये हुए है । आपस में गुंथे हुए सर्प, मौक्तिक मालाएँ, विकसित कमल, गाय, व्याल, हंस, पक्षी, सूर्य, चन्द्र एवं नृत्यांगनाओं का आकर्षक अंकन यहाँ देखने लायक है। एक स्तम्भ पर वर्षा में भीगती महिला भी उत्कीर्ण की गई है। यहीं एक अन्य स्तम्भ पर नृत्यांगना पूरी मुड़ गई है। उसके दोनो हाथ नृत्य-मुद्रा में एक तरफ हैं तो चोटी दूसरी तरफ । उसकी वेणी पैरों तक लटक रही है।
प्रवेशद्वार की चौखट पर पीतल मढ़ा गया है। उसके सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा है । वह मकर-तोरण से अलंकृत है और दो हाथी माला लिये प्रदर्शित हैं। नीचे दो द्वारपालिकाएँ हैं । एक ओर द्वारपाल भी प्रदर्शित हैं । पद्मासन तीर्थंकर के नीचे तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्नों (चन्द्र, सूर्य, मोन आदि) का सुन्दर अंकन है । उससे नीचे एक यक्षी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
- खुले प्रवेशमण्डप में ही लगभग छह फुट ऊँचे चौखटे में बाहुबली के जीवन से सम्बन्धित चित्र हैं। उनकी बाल-लीला, मन्मथावस्था (बाहुबली संगीत सुन रहे हैं), दक्षिणांक का संधान (बाहुबली सिंहासन पर बैठे हैं), तीन प्रकार का बाहुबली-भरत युद्ध, बाहुबली को वैराग्य, उनक सामने खड़े भरत, तपस्यारत बाहुबली से क्षमा मांगते हुए भरत, बाहुबली की कठोर तपस्या और केवलज्ञान सम्बन्धी अनूठे चित्र यहाँ शोभा बढ़ाते हैं।
मठ में प्रवेश करते ही एक चौक है । उसके चारों ओर बरामदे में भो भित्ति-चित्र हैं। दोनों स्थानों के चित्र संक्षेप में इस प्रकार हैं : (1) नागकुमार के जीवन से सम्बन्धित चित्र (देखें चिंत्र क्र. 105), (2) भरत-चक्रवर्ती के दृश्य, (3) वन का चित्रण, (4) छह लेश्याओं