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262 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
चन्द्रप्रभ मन्दिर (बसदि)-पार्श्वनाथ बसदि के निकट ही, यह बसदि 42 फुट लम्बी और 25 फुट चौड़ी है । इसके सामने बलिपीठ और सुन्दर सोपान-अँगला है। गर्भगृह में चन्द्रनाथ की तीन फुट पाँच इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है। काले पाषाण की इस प्रतिमा का भामण्डल अलंकृत है और आसन का भार तीन सिंहों के कन्धों पर है । गर्भगृह के बाहर श्याम यक्ष और यक्षिणी ज्वालामालिनी स्थापित हैं। ये मूर्तियाँ भी सुन्दर हैं। मन्दिर के सामने की एक गोल चट्टान पर 'शिवमारन बसदि' उत्कीर्ण है। उससे ऐसा अनुमान किया जाता है कि इस बसदि का निर्माण गंगवंशीय नरेश श्रीपुरुष के पुत्र शिवमार द्वितीय ने कराया था। इस प्रकार यह बसदि 800 ई. के लगभग निर्मित जान पड़ती है। मूर्ति पर लेख है : "श्री मूलसंघद देशीय गणद वक्रगच्छ बसदि।" इससे यह सूचित होता है कि यह मूर्ति मूलसंघ के देशीय गण के वक्रगच्छ से सम्बन्धित है।
चामुण्डराय बसदि-गोमटेश्वर महामूर्ति के निर्माता चामुण्डराय द्वारा 982 ई. में निर्मित माना जाने वाला यह मन्दिर चन्द्रगिरि पर सबसे सुन्दर और बड़ा मन्दिर माना जाता है (देखें चित्र क्र. 97)।
यह बसदि 68 फुट लम्बी और 36 फुट चौड़ी है। मन्दिर की ऊँचाई 44 फुट है । यहाँ एक सूचनापट्ट लगा है कि यह मन्दिर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा एक संरक्षित स्मारक है। उसके पास चरण और लेख हैं। मन्दिर के सामने के निचले भाग में भी एक लेख है । बलिपीठ है और सोपान-जंगले पर कमल पुष्प का अंकन है। प्रवेश के लिए चन्द्रशिला और दस सीढ़ियाँ हैं। इस प्रकार यह मन्दिर ऊँचाई पर भी बना है। बाहरी द्वार के दोनों ओर शिलालेख है : "श्री चामुण्डराज माडिसिदं" अर्थात् चामुण्डराय ने बनवाया । इससे सिद्ध है कि गोमटेश्वर महामूर्ति के निर्माण के बाद 982 ई. में यह मन्दिर बना। द्वार की चौखट पर सुन्दर उत्कीर्णन है। गर्भगृह में नेमिनाथ की चार फट ऊँची काले पाषाण की पद्मासन मति छत्रत्रयी से युक्त है। चँवरधारी मस्तक से ऊपर अंकित हैं। मकर-तोरण की भी संयोजना है। कोणीय आसन पाँच सिंहों पर आधारित है। - नेमिनाथ की मूर्ति पर जो लेख (लगभग 1138 ई. का ) है उससे ज्ञात होता है कि गंगराज के पुत्र एचण ने त्रैलोक्यरंजन मन्दिर बनवाया था। सम्भव है कि एचण द्वारा बनवाया गया मन्दिर नष्ट हो गया और उसमें प्रतिष्ठापित मूर्ति यहाँ लाकर विराजमान कर दी गई हो।
क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी कूष्माण्डिनी देवी की सुन्दर प्रतिमा भी लगभग चार फुट ऊँचे फलक पर है। देवी के ऊँचे मुकुट के ऊपर वन का आकर्षक अंकन है। उसमें मोर, चिड़ियाँ और शेर भी अंकित हैं। इसी प्रकार सर्वाह्न यक्ष की मूर्ति भी फलक सहित चार फुट के लगभग ऊँची है । यक्ष का मुकुट ऊँचा है और गोल घेरों में पत्रावली आकर्षक ढंग से उत्कीर्ण है।
___ अग्रमण्डप के अतिरिक्त, बसदि में 16 स्तम्भों का एक मण्डप और है। कुछ स्तम्भों पर कलश और कुम्भ का सुन्दर उत्कीर्णन है। ऊपर छत में पत्र-लता के घेरे में एक बड़ा कमल उत्कीर्ण किया गया है।
वैसे तो चन्द्रगिरि पर सभी मन्दिर द्रविड़ शैली के हैं किन्तु इस मन्दिर की द्रविड़ शैली अत्यन्त आकर्षक है । मन्दिर जितना विशाल है उतना ही उसका बाहरी भाग भव्य और आकर्षक है। चौड़ी शिलाओं से निर्मित बाहर की सादी दीवालों के होते हुए भी इसकी मुंडेर और दाक्षिणात्य