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270 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
पंचपरमेष्ठी-अंकन में भरत क्षेत्र के पाँच तीर्थकर अंकित किए गए हैं। उनमें से तीन को कमण्डलु पीछी के साथ दर्शाया गया है।
चौबीस पंखुड़ियों से चौबीस तीर्थंकरों का आशय है। कमल की चार ऊपरी पंखुड़ियों और नीचे की एक पंखुड़ी से पाँच प्रकार के ज्ञान या पाँच महाव्रत दर्शाए गए हैं। नवदेवता प्र
वता प्रतिमा बहुत सुन्दर है। उसका आधार कमल जैसा है। मकर और कीर्तिमख से सज्जित इस प्रतिमा में आठ पंखुड़ियों वाले कमल द्वारा चार परमेष्ठी, जिनमन्दिर, जिनमूर्ति और जिनधर्म, तथा जिनवाणी (पुस्तक के आधार के रूप में) तथा सबसे नीचे सम्यक्त्व दर्शाया गया है।
इस बसदि में पन्द्रहवीं सदी की ही पार्श्वनाथ प्रतिमा तथा धरणेन्द्र और पद्मावती की मूर्तियाँ भी हैं।
____ शान्तिनाथ बसदि--होय्सल काल की अनुपम शिल्पकला अपने गौरवपूर्ण रूप में यहाँ देखी जा सकती है। यदि यह कहा जाए कि यह कर्नाटक का सबसे सुन्दर जैन मन्दिर (चित्र क्र. 102) है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसे 1200 ई. के लगभग वसुधैक-बान्धव रेचिमय्य सेनापति ने निर्माण कराकर सागरनन्दि सिद्धान्तदेव को सौंप दिया था। मन्दिर एक तारे की आकृति का है । उसके स्तम्भ गोल और मनोहारी हैं। किन्तु ऐसा लगता है कि कोई विघ्न आ गया और इस मन्दिर का काम अधूरा ही रह गया। अब भी शिलाएँ आदि पड़ी हैं । यहाँ तक कि इसकी चौकी का काम भी अधूरा रह गया। यह देखा जा सकता है कि अमुक स्थान पर छैनी चल रही थी। इसके प्रवेशद्वार और उसकी चौखट, सिरदल को ही लें। स्पष्ट पता चलता है कि नक्काशी अधूरी रह गई। इसके ऊपर और भी विपत्ति आई दिखती है । इसकी बाहरी दीवालों पर जो सुन्दर मूर्तियाँ अंकित थीं, उनके चेहरे विकृत कर दिए गये हैं। फिर यह मन्दिर उपेक्षित बना रहा । गाँव के बच्चों आदि ने इसकी सुन्दर मूर्तियों, उभारचित्रों आदि को और भी क्षति पहुँचाई। अब इसके चारों ओर पक्की दीवाल बना दी गई है और इसकी रही-सही सुन्दरता को बचाने का प्रयत्न किया गया है।
इस बसदि के अब भी जो सुन्दर अंकन बचे हैं, उनके लगभग 70 चित्र भारतीय ज्ञानपीठ के चित्र-संग्रहालय में हैं । आवश्यकता है इस मन्दिर के शिल्प को ध्यान से देखने की। __मन्दिरों की बाहरी दीवालों में आलों में तीर्थंकरों एवं यक्ष-यक्षिणियों (अधिकांश धरणेन्द्र पद्मावती, अम्बिका, चक्रेश्वरी) के अतिरिक्त सरस्वती, कामदेव और रति आदि के बहुत आकर्षक उत्कीर्णन हैं । विशेष रूप से नर्तकियों, अप्सराओं, मिथुनों के अंकन मन को लुभाते हैं । दोनों हाथों में फूलों का गुच्छा लेकर नृत्य करती किन्नरी, मृदंगवादिकों के साथ नृत्यांगना, केवल मेखला से अपनी नग्न-सी देह छिपाए शालभंजिका, दर्पण में अपना मुख देखती रूपगविता, सुन्दर जूड़ा प्रदर्शित करती एक और शालभंजिका, बहुत महीन वस्त्रों में अपना अंग प्रदर्शित करती सुन्दरी, फूलों के तीर हाथ में लिये रमणी किन्तु उसके पास ही बिच्छू (अधिक राग-रंग दुःख देता है इसका सूचक), बन्दर भी जिस पर मोहित होकर उसकी साड़ी का पल्लू खींच रहा हो ऐसी रूपसी, आदि नारी के अनेक मोहक रूपों की संयोजना यहाँ है। इसी प्रकार बाँसुरी बजाते गन्धर्व, चँवर ढुलाते गन्धर्व, चँवरधारी आदि भी आकर्षक मुद्रा में उत्कीर्ण हैं। उनके