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258 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
है । इस समय वह आधुनिक केरल राज्य की सीमा में (मंगलोर के समीप) कासरगोड ज़िले में बीना नदी के किनारे स्थित है । प्राचीन समय में वह मूडबिद्री, कारकल, मंगलोर प्रदेश की तुलु भाषा के कारण तुलुनाडु की सीमा थी और इस प्रदेश को केरल से पृथक् करती थी ।)
चन्द्रगिरि समुद्र की सतह से 3052 फुट ऊँची और उसकी तलहटी के नीचे मैदान से लगभग 225 फुट ऊँची है। पहाड़ी पर जाने के लिए चट्टान में ही काटकर बनायी गई 222 सढ़ियाँ हैं । सीढ़ियों के दोनों ओर रेलिंग है । उनके बाद साफ, चिकनी और झाड़-झंखाड़ आदि किसी भी प्रकार की बाधा से रहित चट्टान पर चलना होता है । कुल मिलाकर चढ़ाई बहुत ही आसान है ।
शिलालेखों के प्रसंग में हमने देखा कि सन् 600 ई. में या आज से 1400 वर्ष पूर्व यहाँ शेर, चीता, भालू, हरिण और सर्प तथा फल-फूलों से लदे वृक्षों का वन था । किन्तु अब यहाँ न ही वन है और न ही कोई काँटेदार झाड़ियाँ । इसके विपरीत, जामुन के पेड़ और चन्दन के पेड़ अवश्य हैं जो कि शीतलता प्रदान करते हैं । हाँ, भद्रबाहु गुफा के साथ लगी जो ऊँची पहाड़ी है उस पर तेज सनसनाती हवा चलती है और पत्तों की खड़खड़ाहट निर्जन स्थान का आभास देती है । वहाँ प्रायः यात्री नहीं जाते । अनुश्रुति है कि वहीं पर श्रुतकेवली भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मौर्य तपस्या किया करते थे । वहाँ भद्रबाहु स्वामी के चरण हैं । सबसे ऊँची उस जगह पर एक बार 1900 ई में, मैसूरनरेश कृष्णराज वाडियार गए थे और उन्होंने वहाँ अपना नाम खुदवा दिया था। अब वहाँ धातु का एक स्तम्भ देखा जा सकता है। उस पहाड़ी की दूसरी ओर की ढलान बहुत सीधी है । वहाँ से पहाड़ी लगभग खड़ी दिखाई देती है।
चन्द्रगिरि पर सल्लेखना सम्बन्धी लेखों और चरणों की संख्या बहुत अधिक है। श्री शेट्टर के अनुसार, “श्रवणबेलगोल में मिलने वाले 106 स्मारकों में 92 छोटे पहाड़ पर हैं जिनमें लगभग 47 संन्यासियों के, 9 संन्यासिनियों के और 5 गृहस्थों के हैं और ये सभी 7-8वीं सदियों के हैं ।" यात्रियों को इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि वे पुण्यात्माओं के चरणों पर पैर रखते हुए नहीं चलें ।
चामुण्डराय गुण्डु–अर्थात् चामुण्डराय शिला । सीढ़ियों का पहला दौर जहाँ समाप्त होता है वहाँ बायीं ओर कुछ शिलाओं को पारकर लगभग 18 फुट ऊँची दीवाल- जैसी एक शिला खड़ी है जो कि बीच में लगभग 15 फुट चौड़ी होगी । यही 'चामुण्डराय शिला' कहलाती है । यहीं खड़े होकर चामुण्डराय ने सामने की विंध्यगिरि पर तीर चलाया था। अब इस शिला से सामने की पहाड़ी पर प्रतिष्ठित गोमटेश्वर महामूर्ति के कन्धों से कुछ नीचे तक की भुजाएँ दिखाई देती हैं । शिला पर कायोत्सर्ग मुद्रा में सात प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । बीच की मूर्ति स्पष्ट है और छत्रयुक्त है ।
चरण-पहाड़ी पर जाने के लिए बनी 114 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद, बिना सीढ़ियों की एक शिला के समीप एक बहुत बड़ी चट्टान है । उस पर चरण हैं । ये चरण और ऊपर चढ़ने पर 180वीं सीढ़ी से दिखाई देते हैं ।
तोरणद्वार और ऊपर अर्थात् 192 सीढ़ियाँ चढ़ने पर एक साधारण तोरणद्वार मिलता है । वह दो स्तम्भों पर आधारित है और उस पर केवल एक शिला जमाई गई है । यह तोरण