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श्रवणबेलगोल | 247
सपाट, ठोस, चिकने सफेद ग्रेनाइट की यह पहाड़ी सामने से ऐसी लगती है जैसे कोई बहुत बड़ा प्याला उलटा करके रख दिया गया हो। गोमटेश्वर मन्दिर के बाहरी परकोटे तक पहुँचने के लिए चटान को ही काट-काटकर 500 सरल सीढियाँ बम्बई के स्व. माणिकचन्द झवेरी (संस्थापक भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थरक्षक कमेटी) के प्रयत्नों से 1883-84 में बनाई गई थीं। अब इनके दोनों ओर लोहे के नलों की रेलिंग लगा दी गई है जिससे चढ़ाई आसान हो जाती है।
विन्ध्यगिरि की पांच सौ सीढ़ियां चढ़ने के बाद, एक खुला मण्डप है जो यात्रियों के लिए विश्राम-स्थल का काम देता है । वहाँ धीरे-धीरे बहने वाली ठण्डी हवा बड़ा सुख देती है और प्राकृतिक दृश्य का आनन्द आता है सो अलग से। रास्ते भर ट्यूब लाइट भी लगी हैं।
इसी पहाड़ी पर बाहुबली मन्दिर के एक बाजू से पहाड़ से नीचे उतरने के लिए भी सीढ़ियाँ हैं किन्तु आजकल उनका प्रयोग नहीं होता।
विश्रामगह से आगे, किन्त पहाडी की चढाई से पहले. 'चामण्डराय भवन' है। उसमें श्रवणबेलगोल दिगंबर जैन मुज़रई इन्स्टीट्यूशन्स मेनेजिंग कमेटी का कार्यालय है।
ब्रह्मदेव मन्दिर-विन्ध्यगिरि की लगभग पचास सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद, एक दो-मंज़िला भवन मिलता है। इसके नीचे की मंज़िल में ब्रह्मदेव या जारुगुप्पे विराजमान हैं। ये एक पाषाण के रूप में हैं और उन पर सिंदूर पुता है। ऊपर की मंज़िल में एक चौबीसी है। उसके मूलनायक पार्श्वनाथ की लगभग ढाई फीट ऊँची बादामी रंग की भव्य प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है । उस पर नौ फणों की छाया है । फणावली के ऊपर पद्मासन में पार्श्वनाथ हैं जिन पर पाँच फणों की छाया है । अन्य तीर्थंकर दोनों ओर पाँच-पाँच की पंक्ति में हैं और एक पंक्ति में दो मूर्तियाँ हैं। नीचे दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में एक-एक तीर्थंकर हैं। विद्याधरों और चँवरधारियों का भी अंकन है। इसी मंज़िल के दूसरे कक्ष में पीतल की चौबीसी, पंचपरमेष्ठी प्रतिमा तथा नन्दीश्वर एवं मेरु प्रदर्शित हैं।
___तोरण-द्वार-दो सौ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक पाषाण-निर्मित तोरण-द्वार आता है। उस पर मकरतोरण युक्त पक्षी का अंकन है। उसी के दूसरी ओर ऊँचा मुकुट धारण करने वाली गज-लक्ष्मी है। हाथी की सूंड में कमल का फूल उत्कीर्ण है।
कुन्दकुन्द तपोवन-इस तोरणद्वार के बाईं ओर एक प्राकृतिक गुफा है। उसका नवीनीकरण किया गया है। उसके सामने एक पक्का कमरा बना दिया गया है। पेड़-पौधे आदि लगाए गए हैं। साधुओं के लिए चट्टान के नीचे गुफा है। यह नवीनीकरण मुनि श्री विद्यानन्दजी की प्रेरणा से किया गया है।
चौबीस तीर्थंकर बसदि या होस बसदि-होस का अर्थ होता है नया । यह एक छोटा-सा मन्दिर है, लगभग 12 फीट चौड़ा और 25 फीट लम्बा । इसकी सीढ़ियों के पास नागरी में एक शिलालेख है। उससे ज्ञात होता है कि छोटी सादी ईंट और गारे से निर्मित इस मन्दिर को 1648 ई. में चारुकीर्तिजी के लिए धर्मचन्द्र द्वारा बनवाया था। इस मन्दिर में ढाई फीट ऊँचे एक पाषाण पर चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। बीच की और आसपास की मूर्तियाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं, शेष तीर्थंकर प्रभावली के आकार में पद्मासन में हैं। गर्भगृह से आगे