Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 341
________________ श्रवणबेलगोल / 245 विवरण सम्बन्धी, ग्राम और भूमि आदि के दान से सम्बन्धित लेख लगभग सौ हैं । इन शिलालेखों का केवल धार्मिक महत्त्व ही नहीं था, आर्थिक, राजनीतिक, साहित्यिक महत्त्व भी रहा है । श्रवणबेलगोल के शिलालेख सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के युग में (लगभग 2300 वर्ष पूर्व) तो कर्नाटक में जैनधर्म का अस्तित्व सिद्ध करते ही हैं, साथ ही, कर्नाटक के अनेक प्रदेशों के राजवंशीय एवं अन्य लोगों द्वारा भी यहाँ जैन मन्दिर आदि का निर्माण कराया जाना तथा उनके द्वारा जीर्णोद्धार आदि कराना कर्नाटक में व्यापक रूप से जैन-धर्म का लोकप्रिय होना भी सिद्ध करता है । भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (विशेषकर कर्नाटक के आचार्यों) के ज्ञान के लिए भी ये लेख बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । विध्यगिरि पर सिद्धरबसदि में उत्तर की ओर शक सं. 1320 का एक लम्बा शिलालेख है जिसमें चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करने के बाद गणधरों से प्रारम्भ कर जो आचार्य परम्परा दी है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है । उसमें अनेक आचार्यो यथा आचार्य गोपनन्दी तथा चारुकीर्ति की शास्त्रार्थ - प्रतिभा का उल्लेख कर कहा गया है कि उनकी प्रतिभा के सामने अनेक अन्यधर्मी टिक नहीं पाए । शिलालेखों के आधार पर मूलसंघ के नन्दिगण और देशीगण का जो वंशवृक्ष बनता है, डॉ. हीरालाल जैन की पुस्तक 'जैन शिलालेख संग्रह भाग-1' में देखा जा सकता है । शिलालेखों में महिलाएँ - जिनभक्ता अनेक महिलाओं ने यहाँ निर्माण कार्य कराए या सल्लेखना विधि से शरीर त्यागा । यहाँ के कतिपय शिलालेखों से महिलाओं के नामों की भी अच्छी जानकारी होती है; यथा - अक्कब्बे, जक्कणब्बे, नागियक्क, माचिकब्बे, शान्तिकब्बे, एचलदेवी, शान्तला, श्रियादेवी, पद्मलदेवी आदि । शिल्पियों के नाम - कुछ लेखों के नीचे शिल्पियों के नाम भी हैं, जैसे दासोज (चन्द्रगुप्तबसदि), अरिष्टनेमि (चन्द्रगिरि), दागोदाजि आदि । किन्तु खेद का विषय है कि गोमटेश्वर की विशाल मूर्ति का निर्माण करने वाले प्रधान शिल्पी ने अपना नाम ही नहीं दिया । वन्दना क्रम यह मानकर कि यात्री या पर्यटक श्रवणबेलगोल बस स्टैण्ड या उसके पास स्थित 'मुनि विद्यानन्द निलय' से अपनी वन्दना प्रारम्भ करे, यहाँ उसी के अनुसार क्षेत्रदर्शन का क्रम दिया जा रहा है । धर्मचक्र वाटिका - भगवान महावीर के 2500वें निर्वाणोत्सव के समय एक धर्मचक्र देश के विभिन्न भागों में घुमाया गया था । उसी के श्रवणबेलगोल आगमन के उपलक्ष्य में 1977 ई. 'यह वाटिका चन्द्रगिरि की तलहटी में बनाई गई थी। इसकी रचना शैल - वाटिका (रॉक गार्डन ) जैसी हो यह प्रयत्न किया गया है। इसी में धर्मचक्र और महावीर कीर्तिस्तम्भ निर्मित हैं । इसके निर्माता के नाम पर यह 'ज्ञानीराम हरकचन्द सरावगी धर्मचक्र वाटिका' कहलाती है। में

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