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श्रवणबेलगोल / 251
के परकोटे का महाद्वार आता है। यह बाहुबली-मन्दिर का प्रवेशद्वार माना जाता है । उसकी ऊँचाई लगभग 15 फट है। उसके सिरदल पर चवरधारियों सहित पद्मासन तीर्थंकर मति है। नीचे दो द्वारपाल अंकित हैं । द्वार के दोनों ओर खुले मण्डप हैं । सीढ़ी संख्या 618 के पास एक मनोरंजक चित्र है। उसमें एक आदमी को शेरनी से लड़ता दिखाया गया है। नीचे उसका बच्चा है। यह अंकन द्वार से पहले की दीवाल में है। मत्स्य भी अंकित है। दाहिनी ओर गदा समेत एक यक्ष प्रदर्शित है। द्वार का गोपुर भी आकर्षक है। उसमें सबसे ऊपर पद्मासन में तीर्थंकर छत्रत्रयी और चँवरधारियों सहित हैं। बीच की तीर्थंकर मूर्ति के दोनों ओर एक स्त्री और एक पुरुष हाथ जोड़े हुए प्रदर्शित हैं। बायीं ओर के छोटे द्वार के सिरदल पर भी पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। द्वार के बायीं ओर की पीछे की दीवाल पर ऊपर पद्मासन में तीर्थंकर, नीचे पद्मासन में तीन तीर्थंकर, कायोत्सर्ग मुद्रा में एक और तीर्थंकर तथा सिंह-आसन पर ब्रह्मयक्ष विराजमान हैं।
बाहरी परकोटा-गोमटेश्वर मूर्ति के चारों ओर एक लम्बा-चौड़ा बाहरी परकोटा है। यह भी मत है कि 195 फुट लम्बे और 125 फुट चौड़े इस परकोटे को सत्रहवी-अठारहवीं सदी में बनाया गया । इसकी दीवारें लगभग बीस फुट ऊँची हैं। उसमें स्थान-स्थान पर कुछ ऊँचाई पर उभरे पत्थर लगे हैं । उन पर कहीं उत्कीर्णन है तो कहा अधूरा रह गया। कला को दृष्टि से यहाँ प्रकृति या पशु-पक्षियों का भी सुन्दर चित्रण है। एक स्थान पर राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान अंकित हैं, तो पद्मासन और कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर-मूर्तियों की संख्या 21 है। पन्द्रहवीं मूर्ति बाहुबली की है। उस पर लताओं का स्पष्ट अंकन है। सूर्य, चन्द्रमा, हाथी, मोर आदि पशुओं के सुन्दर चित्र हैं। गाय-बछड़ा, मोनयुगल (दा मछलियाँ), एक ही आकृति में तीन मछलियाँ, नीचे कूद रहे दो बन्दर और नारियल का पानी पीता एक आदमा आदि ये सब ऐसे दृश्य हैं जो अपनी आनन्दानुभूति से यात्री की सारी थकान दूर कर गोमटेश्वर को महामति के दर्शन के लिए उसे स्फूर्ति प्रदान करने हेतु बहुत उपर्युक्त स्थान पर उत्कीर्ण किए गए हैं।
शासन-मण्डप या ओडेयर-मण्डप-चार स्तम्भों के इस मण्डप में राजाओं द्वारा दिए गए दान आदि से सम्बन्धित शिलालेख हैं। यहीं के शिलालेख में उल्लेख है कि मन्दिर को गिरवो रखी गई जमीन आदि सम्पत्ति को 1634 ई. में मैसूरनरेश चामराज ओडयर ने किस प्रकार महाजनों के चंगुल से छुड़ाया था (देखिए जैनमठ प्रकरण)।
सिद्धर बसदि-अर्थात् सिद्ध भगवान का मन्दिर । इसमें सिद्ध भगवान की तीन फुट ऊँची मूर्ति है । मन्दिर छोटा ही है किन्तु शिलालेखों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। मूर्ति के दोनों ओर लगभग छ: फुट ऊँचे कलापूर्ण स्तम्भ हैं। दाहिनी ओर के स्तम्भ पर शिष्यों को उपदेश देते हुए आचार्य का एक चित्र है। बायीं ओर के स्तम्भ पर कवि गंगराज का 1433 ई. में रचित एक काव्यात्मक लेख है जिसमें श्रुतमुनि के स्वर्गवास का वर्णन है । इसी प्रकार दाहिनी ओर के स्तम्भ पर कवि अर्हद्दास का एक लेख 1378 ई. का है जिसमें पण्डितार्य की प्रशस्ति उनके स्वर्गगमन पर लिखी गई थी।
अब परकोटे से हम चलते हैं गोमटेश्वर बाहुबली मन्दिर की ओर । ___ गुल्लिकायज्जी-सिद्धर बसदि से आगे बढ़ने पर हमें गुल्लिकायज्जी की पाँच फुट ऊँची मूर्ति मिलती है (चित्र क्र. 94)। वह तत्कालीन कर्नाटक की महिला वेषभूषा में है और आभूषणों