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238 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
धार्मिक कार्य में लोभ का यही फल होता है।" शिल्पी को बोध हो गया और उसके हाथ अपने आप ही सोने से अलग हो गए। उसके बाद से उस शिल्पी ने पूरी तन्मयता के साथ बाहुबली की मूर्ति के निर्माण में अपने आपको लगा दिया।
शास्त्रीय विधान भी है कि जब कोई शिल्पी भगवान की पवित्र मूर्ति बनाता है तो उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। प्रधान शिल्पी ने भी सांसारिक कार्यों से स्वयं को मुक्त कर ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था, ऐसा जान पड़ता है। वह अपने घर भी नहीं जाता था। पहाड़ी पर ही उसका निवास हो गया था। उसकी पत्नी जब उसके लिए भोजन लाती तो वह उससे बिना बोले भोजन कर लेता और मूर्ति के निर्माण कार्य में दत्तचित्त बना रहता। यह हालत जब पत्नी की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने चामुण्डराय की पत्नी से इसकी शिकायत की। अजितादेवी ने शिल्पी की पत्नी पर अविश्वास करते हुए कहा कि "आज मैं तुम्हारे पति के लिए भोजन लेकर जाऊँगी और देखती हैं कि वह किस प्रकार का व्यवहार करता है।" वह शिल्पी का भोजन लेकर गई तो शिल्पी ने वैसा ही रूखा व्यवहार किया जैसा कि वह अपनी पत्नी के साथ करता था। अजितादेवी और चामुण्डराय ने शिल्पी की इस तन्मयता की सराहना की। __जब मूर्ति-निर्माण का कार्य समाप्त हुआ तो शिल्पी घर लौटा। जब पत्नी ने उसे भोजन परोसा तो वह बोला, “यह कैसा भोजन है ? इसमें मसाले, नमक कुछ भी नहीं है।" इस पर पत्नी ने कहा, “तुम तो जब-तब पहाड़ी पर इसी प्रकार का भोजन करते रहे हो। अब स्वाद कैसे आ गया?" सही परिस्थिति समझ में आने पर पति-पत्नी दोनों हँस पड़े। तो शिल्पी की अनन्य तन्मयता और चामुण्डराय की अटूट दानवीरता से महामुनि बाहुबली की मूर्ति एक अनुपम कलाकृति बनकर तैयार हो गई।
अब चामुण्डराय ने उसकी प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। उन्हें याद था उनकी माता दूध तब ग्रहण करेंगी जबकि वे वाहुबली के दर्शन कर लेंगी। अतः उन्होंने निश्चय किया कि बाहुबली का प्रथम अभिषेक दूध से किया जाए। प्रतिष्ठा की बात सुनकर हजारों जन वहाँ एकत्र हो गए। सैकड़ों मन दूध इकट्ठा किया गया मूर्ति के अभिषेक के लिए। मूर्ति का प्रतिष्ठा-कार्य सम्पन्न कराया आचार्य श्री अजितसेन के शिष्य आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने। विशाल मंच बनाया गया-हाथों-हाथ बाहुबलो के मस्तक तक दूध से भरे कलश अभिषेक के लिए पहुँचाने हेतु। पहला कलश चामुण्डराय ने उठाया और अभिषेक किया बाहुबली का । कलश पर कलश दूध के डाले गए किन्तु मूर्ति के पूरे शरीर का अभिषेक नहीं हो पाया। चामुण्डराय तथा अन्य जन चिन्तित हो उठे। कौन-सा विघ्न उपस्थित हो गया? कौन है वह भाग्यशाली पुरुष या महिला जिसके हाथों बाहुबली का अभिषेक होगा ? सबको अवसर दिया गया किन्तु अभिषेक नहीं हो पाया । इतने में एक कोने में खड़ी विनीत बुढ़िया आचार्य नेमिचन्द्र को दिखी। उन्होंने आदेश दिया कि उस वृद्धा को भी अभिषेक का अवसर दिया जाए। उसके हाथों में गुल्लिकाय (एक प्रकार के फल का खोखला हिस्सा) था। उसी में उसने कुछ दूध भर रखा था। लोग हँसे कि इस बढिया से क्या अभिषेक होगा। सहारा देकर उसे सबसे ऊपर मंच पर ले जाया गया। उसने दूध को जो धार छोड़ी तो पूरी मूर्ति दूध में नहा गई और दूध की धाराएँ विन्ध्यगिरि पर बह