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हलैबिड | 211 एक अन्य दण्डनायक ने कोप्पण में एक नवीन जिन-प्रतिमा स्थापित कराई थी। इस राजा के प्रश्रय में कुमदेन्दु ने 1275 ई. में कन्नड़ में जैन रामायण की रचना की थी।
रामनाथ होयसल (1254-1297 ई.) ने कन्ननूर (विक्रमपुर) को अपनी राजधानी बनाया। उसने 1276 ई. में कोगलि में 'चेन्न पार्श्व-रामनाथ बसदि' का निर्माण कराया था। कोल्हापुर के 'सामन्त जिनालय' को भी उसने दान दिया था।
___अन्तिम होय्सलनरेश बल्लाल तृतीय (1291-1333 ई.) ने, डॉ. सालेनोर के अनुसार, जैनधर्म को संरक्षण प्रदान किया था। इस नरेश का पूरा जीवन अपने राज्य की रक्षा में बीता। "इस वीर बल्लाल के शासनकाल में भी जैनधर्म ही कर्नाटक देश का सर्वोपरि एवं प्रधान धर्म था, और यह राजा भी उसका पोषक और संरक्षक यथासम्भव रहा।" (डॉ. ज्योतिप्रसाद) उसके समय में 1310 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने द्वारसमुद्र पर आक्रमण किया और उसे लूटा। राजा ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली, किन्तु बाद में मुकर गया। उसके बाद 1326 ई. में मुहम्मद तुगलक ने भीषण आक्रमण कर इस होय्सल राज्य का अन्त ही कर दिया। सन् 1333 ई. में इस नरेश की मृत्यु हो गई। वह अपने राज्य की रक्षा का भार कुछ ऐसे व्यक्तियों को सौंप गया जिनके हाथों विजयनगर साम्राज्य की नींव पड़ी।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि बिट्टिदेव या विष्णुवर्धन सहित उसके बाद के सभी होयसलनरेश जैनधर्म के पोषक थे । प्रायः सभी को उपाधि 'सम्यक्त्वचूडामणि' थी।
मन्दिरों की ओर
होय्सलेश्वर मन्दिर–हले बिड गाँव में जिस तिराहे पर सरकारी बसें या मेटाडोर रुकती हैं (कोई शेड नहीं है) वहाँ से एक सड़क कुछ ऊपर उठती जाती है और करीब एक-दो फर्लाग चलने पर जहाँ फिर एक तिराहा बनाती है वहीं सामने है होयसल कला का एक उत्कृष्ट नमूना 'होय्सलेश्वर मन्दिर' (शिव को समर्पित)। इसी मन्दिर के अहाते में है खुले आकाश-तले एक संग्रहालय जिसमें उत्तुंग और कलात्मक जैन मूर्तियाँ भी हैं । मन्दिर के विशाल अहाते में पुरातत्त्व विभाग का सुन्दर उद्यान है। (होय्सलेश्वर मन्दिर के ठीक सामने है कर्नाटक सरकार का टूरिस्ट बंगला जहाँ कम दरों पर ठहरने की अच्छी सुविधा है । जैन पर्यटकों को यहीं ठहरना चाहिए, क्योंकि यहाँ का उपर्युक्त मन्दिर और जैन मन्दिरों एवं सग्रहालय देखने के लिए कम-सेकम सात-आठ घण्टों का समय आवश्यक है। जैन मन्दिरों के दर्शन के लिए सुबह पहुँचना चाहिए और अर्चक (पुजारी) की सहायता से देखना चाहिए। उसे अपने घर से भी ताला खोलने के लिए बुलाना सम्भव हो सकता है।) -----
'होय्सलेश्वर मन्दिर' के सामने तिराहे पर अंग्रेज़ी में लिखा है "Visit Famous Ancient Jain Temple" और उसी के नीचे नागरी में भी लिखा है “सन्दर्षन प्रेक्षक्षीय जैन मन्दिर" (जो वहाँ लिखा है वैसा ही प्रस्तुत लेखक ने लिख दिया है)। टूरिस्ट बसें प्रायः इन मन्दिरों को नहीं दिखाती हैं। यहाँ के टूरिस्ट बंगले में भी लोग कम ही ठहरते हैं । जो भी हो, टूरिस्ट बंगले के सामने की सड़क पर डेढ़ फलांग की दूरी पर, एक गाँव बस्तिहल्ली है । वहाँ सार्वजनिक निर्माण विभाग ने लिख रखा है "Jain Temple-Kedareshwar Temple" इसी स्थान के बाईं ओर जैन