Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 305
________________ हलेबिड | 209 प्रकाशित किया है । उपन्यास का मुख्य स्वर यह है कि वह एक कुशल प्रशासिका थी और परम जैन होते हुए भी पक्षपात रहित या धर्मनिरपेक्ष थी। जो भी हो, पटरानी शान्तला की यशोगाथा आज भी गूंजती है। उसी की प्रेरणा से एक गाँव शान्तिग्राम बसाया गया था। यह गाँव बंगलोर मार्ग पर हासन से 12 कि. मी. की दूरी पर है। वहाँ आज भी शान्तिनाथ बसदि है। पटरानी शान्तला के धर्मगुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव थे। रानी ने श्रवणबेलगोल में एक सुन्दर जिनमन्दिर का निर्माण कराकर अपने पति की अनुमति से एक गाँव और विभिन्न दान दिए थे । यह मन्दिर 'सवतिगन्धवारण बसदि' कहलाता है। वास्तव में यह एक विशेषण है जो उसके द्वारा निर्मित बसदि के पूर्व की ओर एक लम्बे शिलालेख में उत्कीर्ण है जिसमें शान्तला द्वारा यह बसदि बनवाने और उसके लिए एक तालाब का निर्माण कराने तथा एक गाँव अपने गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव को दान करने का विवरण है। इस लेख में: उसे 'उद्वत्तसवतिगन्धवारण' अर्थात् 'उच्छृखल सौतों (सवति) को वश में करने के लिए मत्त हाथी के समान कहा गया है। तात्पर्य यह कि वह अपनी सौतों को नियन्त्रण में रखती थी। उसके इस विशेषण के कारण इस मन्दिर का नाम भी 'सवतिगन्धवारण बसदि' पड़ गया। महारानी ने 1121 ई. में इसी जिनालय में भगवान शान्तिनाथ की पाँच फुट ऊँची प्रतिमा भी स्थापित करायी थी। शिलालेख में उसके कुछ अन्य विशेषण इस प्रकार हैं-द्वितीय लक्ष्मी के समान, अभिनव रुक्मिणी, पतिहित में सत्यभामा, विवेक बृहस्पति, प्रत्युत्पन्नमति (तुरन्त निर्णय करनेवाली), मुनियों का का आदर करनेवाली, सीता के समान पतिव्रता, सम्यक्त्वचूड़ामणि, चतुर्विध संघ की उन्नति करनेवाली, अपने कुल के अभ्युदय के लिए दीपक के समान, गीतवाद्यनृत्य की सूत्रधार, जिनमत की प्रचारक और आहार-अभय-औषध-शास्त्र इन चार प्रकार के दानों में आनन्द लेने वाली। उपर्युक्त बसदि के दूसरे मण्डप के तीसरे स्तम्भ पर एक विस्तृत शिलालेख और भी है जिसमें पट्टमहिषी शान्तला और श्रबणबेलगोल में उसकी माता माचिकब्बे द्वारा सल्लेखना ग्रहण करने का विवरण है। इस लेख में शान्तला के कुछ और गुण गिनाए गए हैं; जैसे-व्रतगुणशीलचारित्र से युक्त अन्तःकरणवाली, लोक में विख्यात, पुण्य का उपार्जन करने में कारण, जिनधर्मकथा में आनन्द अनुभव करनेवाली, भव्यजनवत्सला, जिनगन्धोदक से पवित्र अंगों वाली आदि। इस धर्मवत्सला महारानी ने सन् 1131 ई. में शिवगंग नामक स्थान पर अपने गुरु की उपस्थिति में समाधिमरण किया। इस प्रकार पटरानी शान्तला अपना नाम अमर कर गई। कर्नाटक सरकार द्वारा प्रकाशित राज्य के गजेटियर (खण्ड दो, 1983) में देवी शान्तला को कर्नाटक संस्कृति के महान आदर्शों की प्रतीक और उसके जीवन को उस राज्य के सांस्कृतिक इतिहास में धार्मिक मेल-मिलाप का मलस्वर कहा गया है। उद्धरण इस प्रकार है : “Shantala, the queen of Vishnuvardhana was the symbol of all that was great in Karnataka culture. Her mother was Jaina, her father a Shaiva, and her husband a Vaishnava. This religious harmony has been the keynote of Karnataka culture throughout its history.” पुत्री-वियोग को सहने में असमर्थ उसकी माता माचिकब्बे ने भी श्रवणबेलगोल में एक मास का व्रत लेकर सल्लेखना ग्रहण की । इस तथ्य का भी उल्लेख उपर्युक्त शिलालेख में किया गया है।

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