Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 306
________________ 210 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) इतिहास प्रसिद्ध नृपदम्पती विष्णुवर्धन और शान्तला के निधन के बाद, विजय नरसिंहदेव (1149 से 1173 ई.) इस राज्य का उत्तराधिकारी हुआ। वह विष्णुवर्धन की लक्ष्मी नामक रानी का पुत्र था। वह अभिषेक के समय केवल आठ वर्ष का था। किन्तु उसके पिता के जैन सेनापति और मन्त्री उसके संरक्षक रहे। उसके सामन्तों, सेनापतियों एवं अन्य अधिकारियों के जैनधर्म सम्बन्धी आठ-दस लेख प्राप्त हुए हैं । श्रवणबेलगोल की भण्डारि बसदि में पश्चिम की ओर एक शिलालेख है जिसमें कहा गया है कि नरसिंह के मन्त्री हुल्ल ने अनेक मन्दिरों का निर्माण-जीर्णोद्धार कराने के अतिरिक्त श्रवणबेलगोल में भी 'चतुर्विंशति तीर्थंकर जिनालय' बनवाया था। एक बार नरसिंह वहाँ आया और उसने इस जिनमन्दिर का नाम 'भव्यचूड़ामणि' रखा तथा मन्दिर के पूजन, जीर्णोद्धार आदि के लिए 'सवणेरु' नामक गाँव दान में दिया। नारसिंह के बाद, बल्लाल द्वितीय (1173-1220 ई.) होयसल राज्य का शासक हुआ। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन के अनुसार “वह अपने पितामह विष्णुवर्धन की भाँति ही प्रतापी, बड़ा वीर, महापराक्रमी, भारी विजेता और स्याद्वादमत (जैनधर्म) का पोषक एवं पक्षपाती था।" उसने अपने पिता के मन्त्री हुल्ल के निवेदन पर श्रवणबेलगोल की उपर्युक्त बसदि के लिए 1175 ई. में दो गाँव दान किये थे। इसी प्रकार वहाँ की पार्श्वनाथ बसदि के लिए भी दान दिया। 1192 ई. में द्वारावती के धनी व्यक्तियों एवं नागरिकों ने 'अभिनव शान्तिदेव' या नगर-जिनालय नामक मन्दिर बनवाया। राजा स्वयं उसमें गया और उसने कई ग्राम दान में दिए। उसके समय में कन्नड़ भाषा में विपुल जैन साहित्य भी रचा गया जिसमें प्रमुख हैं-'यशोधरचरित्र' 'अंजनाचरित', हरिवंशाम्युदय', 'जीवसम्बोधन' आदि । उसके नगराध्यक्ष नागदेव, सेनापति भरत और बाहबली, दण्डाधिप बचिराज, दण्डनायक महादेव आदि अनेक जिनभक्त पदाधिकारी थे, जिन्होंने अनेक प्रकार के दान दिए थे। वीरबल्लाल के बाद उसके पुत्र नरसिंह द्वितीय ने पाँच वर्ष राज्य किया। उसके बाद सोमेश्वर (1225-1245 ई.) ने शासन संभाला। मल्लकेरे ग्राम में, ईश्वर मन्दिर के सामने के शिलालेख से ज्ञात होता है कि इस राजा की भी एक उपाधि 'सम्यक्त्वचूडामणि' थी। उसके सेनापति 'शान्त' ने शान्तिनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने यह भी लिखा है कि "उसकी अनुमति से उसके मन्त्री रामदेव नायक द्वारा एक व्यवस्थापत्र तैयार किया गया था, जिसके अनुसार श्रवणबेलगोल के भीतर राजकरों आदि पर सम्पूर्ण अधिकार वहाँ के जैनाचार्य को था। वहाँ व्यापारी भी प्रायः सब जैन ही थे। उनकी भी उक्त शासन में पूर्ण सहमति थी।" नरसिंह तृतीय (1254-1291 ई.) होयसल साम्राज्य के एक भाग का राजा हुआ। दूसरे भाग पर रामनाथ (1254-1297 ई.) का शासन रहा। दो रानियों के दो पुत्रों के कारण राज्यविभाजन हुआ। ___सन् 1254 में नरसिंह तृतीय ने राजधानी के 'विजयपार्श्वनाथ' मन्दिर के दर्शन कर पहले से चले आए दान पर स्वीकृति दी और स्वयं भी एक ग्राम दान में दिया। सन् 1265 में उसने राजधानी के शान्तिनाथ जिनालय के लिए अपने गुरु माघनन्दि को 15 गाँव दान में दिए। उसके दण्डनायक सोमय्य ने 1271 ई. में एक प्राचीन बसदि का जीर्णोद्धार कराया था। माधव नामक

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