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196 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) तथा सात फणों से मण्डित है। सर्पकुण्डली पादमूल तक प्रदर्शित है । साथ ही, यक्ष-यक्षिणी का भी अंकन है । ऊपर की मंज़िल में भी पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में धातुनिर्मित मोहक प्रतिमा यक्ष-यक्षिणी सहित है। प्रभावली अत्यन्त सुन्दर है। कूष्माण्डिनी देवी की प्रतिमा प्रभावली से अलंकृत है। देवी के हाथों में ध्वजा, दण्ड आदि का स्पष्ट अंकन है। ___अनन्तनाथ बसदि में पद्मासन और कायोत्सर्ग मुद्रा में अनेक जिन-प्रतिमाएँ हैं । मूलनायक अनन्तनाथ की मनोज्ञ मूर्ति है। उसका भामण्डल सूर्य-किरणों की-सी छबि लिये हुए है। यक्षयक्षी भी प्रदर्शित हैं । केवल चँवरों का अंकन है, चँवरधारियों का नहीं।
___नल्लूर की पार्श्वनाथ बसदि में ग्यारहवीं सदी से लेकर पन्द्रहवीं सदी तक की अनेक तीर्थंकर एवं यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँ हैं । यहाँ ग्यारहवीं सदी की लगभग 18 इंच की एक 'कांस्य चौबीसी' है जो कि अंकन की दृष्टि से अद्भुत है । उसके आसन पर एक गाय और एक शेरनी अंकित हैं। वे एक-दूसरे के बच्चों को दूध पिला रही हैं। चौबीसी में दाएं-बाएँ पार्श्व और सुपार्श्व हैं। पद्मासन मूलनायक के मस्तक से ऊपर दोनों ओर तीन-तीन तीर्थंकर हैं। उससे ऊपर एक पंक्ति में सात और उससे ऊपर की पंक्ति में पाँच तथा सबसे ऊपर की पंक्ति में तीन तीर्थंकरों की संयोजना होने के कारण चौबीसी सुन्दर बन पड़ी है। इसी सदी की ज्वालामालिनी को एक बैल पर सवार बताया गया है। देवी का किरीट ऊँचा है। दसवीं सदी की नेमिनाथ की यक्षिणी मूर्ति में अम्बिका का एक पुत्र गोद में है, दूसरा पास खड़ा है किन्तु देवी के साथ सामान्यतः अंकित आम्रगुच्छ नहीं है। इसी देवी की एक अन्य प्रतिमा में देवी के चार हाथ सामान्य वस्तुओं के साथ बताए गए हैं। उसके पैर के नीचे उसका वाहन सिंह है। तेरहवीं सदी की नौ इंची ज्वालामालिनी की पादुका ध्यान देने योग्य है। चौदहवीं सदी की सात इंची, पद्मावती ललितासन में है और आसन पर कुक्कुट सर्प चिह्न से युक्त है। इसी सदी के, महावीर स्वामी के यक्ष सर्वाह्न ऊँचे आसन पर खड़े हैं। उनके मस्तक पर धर्मचक्र है। मूर्ति सात इंच की ही है। तेरहवीं सदी के ब्रह्मयक्ष घोड़े पर सवार प्रदर्शित हैं।
उपर्युक्त बसदि में पार्श्वनाथ की बारहवीं, तेरहवीं और पन्द्रहवीं सदी की सुन्दर मूर्तियाँ हैं। बारहवीं सदी की प्रतिमा सात फणों से युक्त है। उस पर जल उगलते मकरों का अंकन मनोहारी है। तेरहवीं सदी की नौ इंची पार्श्व-प्रतिमा पर नौ फणों को छाया है। सर्पकुण्डली पीछे प्रदर्शित है। पन्द्रहवीं शताब्दी की इसी आकार की पार्श्वनाथ की प्रतिमा में एक विशेषता यह है कि उस पर छाया कर रहे सात फणों के नीचे एक पूर्ण विकसित कमल का अंकन है । चौदहवीं सदी की दो चौबीसियाँ भी यहाँ हैं।
नल्लूर में पन्द्रहवीं सदी का एक 'ब्रह्म जिनालय' भी है। नेल्लिकरु (Nellikaru)
____कारकल तालुक के अन्तर्गत इस स्थान में पार्श्वनाथ बसदि नामक एक जिनालय है । इसमें ग्यारहवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक की सुन्दर प्रतिमाएँ हैं (देखें चित्र क्र. 87)। मूलनायक पार्श्वनाथ की चार फुट ऊँची कायोत्सर्ग प्रतिमा सात फणों और छत्रत्रयी से युक्त तथा मकरतोरण एवं मस्तक के दोनों ओर चँवर से सुसज्जित है। धरणेंद्र और पद्मावती घुटनों तक बैठे