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धर्मस्थल | 191 कन्याकुमारी की मूर्ति भी सोने की है। यह मन्दिर एक न्यायालय की भाँति है। यहाँ कोई भी झूठी कसम नहीं खा सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे हानि उठानी पड़ती है, यहाँ तक कि मृत्यु भी हो जाती है, ऐसी मान्यता है। मन्दिर में लोग मनौतियाँ मनाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर नाना प्रकार का चढ़ावा चढ़ाते हैं। कुछ लोग हेग्गडेजी के भार के बराबर पदार्थ भी भेंट करते हैं । मन्दिर दर्शनीय है। उसमें केवल पेंट या लुंगी धोती पहनकर ही पुरुष प्रवेश कर सकते हैं।
मंजुनाथ मन्दिर या धर्मस्थल की विशेषता यह है कि मन्दिर शैव है, पुजारी वैष्णव हैं और व्यवस्थापक जैन परिवार।
मंजुनाथ मन्दिर के सामने एक संग्रहालय भी है।
वसन्त महल-उपर्युक्त मन्दिर के निकट ही श्री वीरेंद्र हेग्गडेजी का निवास स्थान है। यह विशाल भवन वसन्त महल कहलाता है । यहाँ उनके निजी सचिव से सम्पर्क किया जा सकता है तथा यहाँ पर स्थित चैत्यालय के दर्शन की अनुमति प्राप्त की जा सकती है। हेग्गडेजी अपने घर में भी अनेक जैन यात्रियों को प्रेमपूर्वक भोजन कराते हैं। उनके महल में प्रवेश करते ही एक सुसज्जित सम्मेलन या सभाभवन है।
___ श्री हेग्गडेजी के पार्श्वनाथ चैत्यालय में दरवाजे पर चाँदी जड़ी है, सिरदल पर सुन्दर ढंग से उत्कीर्ण पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा है। सोने की पार्श्वनाथ मूर्ति, सिद्ध भगवान की स्फटिक मूर्ति, महावीर स्वामी की पंचधातु की प्रतिमा और भगवान महावीर के समवसरण की सुन्दर रचना है। यहीं वर्धमान स्वामी को इन्द्र और इन्द्राणी हाथी पर अभिषेक के लिए ले जाते प्रदर्शित हैं । वेदी के ऊपर बड़ा-सा स्वस्तिक है । सरस्वती एवं यक्षिणियों की मूर्तियाँ भी नीचे स्थापित हैं। छोटा-सा यह चैत्यालय सुन्दर और आकर्षक है।
वसन्त महल के नीचे वाले चौक में श्री आदिनाथ स्वामी मन्दिर है। मूलनायक आदिनाथ की पंचधातु की लगभग डेढ़ फुट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में छत्रत्रयी से युक्त, मकर-तोरण से सुसज्जित प्रतिमा है (देखें चित्र क्र. 83)। यहाँ एक अत्यन्त आकर्षक चौबीसी भी तीन ओर निर्मित है। यह स्फटिक की है और रोशनी करने पर प्रतिमाएँ हरी, लाल, पीली दिखाई देती हैं। प्रकाश प्रतिमाओं के आर-पार हो जाता है । श्रुतस्कन्ध के अतिरिक्त यहाँ कुछ कांस्य प्रतिमाएँ भी हैं । गर्भगृह से आगे के कक्ष में सुन्दर श्रृंगार से सज्जित पद्मावती, चाँदी की पॉलिश और मकर-तोरण युक्त जिनवाणी माता भी हैं । मन्दिर के प्रवेश-द्वार पर पद्मासन तीर्थंकर और ऊपर के गवाक्ष में भी पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति है।
जैन पर्यटकों को श्री हेग्गडेजी के कार्यालय से सम्पर्क करना चाहिए। उनके सचिव आदि से भी पर्याप्त सहायता मिलती है। पता इस प्रकार है
धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेग्गडेजी पो. धर्मस्थल (Dharmasthala)
पिनकोड--574216, कर्नाटक टेलिफोन नं. 21, हेग्गडेजी का फोन नं. 22 धर्मस्थल है। चाँदी का मकर-तोरण से युक्त एक सुन्दर रथ भी यहाँ है। उस पर गणेश आदि का अंकन