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190 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
बार लिपटी हैं और कुहनी पर होती हुई कन्धों के कुछ ऊपरी भाग तक दो बार बाहुबली की भुजाओं को वेष्टित करती हैं । बाहुबली के घुटनों के दोनों ओर तक झाड़ियाँ दिखाई गई हैं। उनके पत्ते तिहरे-चौहरे होकर नीचे की ओर झुके हैं । वहीं, बांबियों में से सर्प निकलते दिखाए गए हैं। प्रतिमा के मस्तक पर छल्लेदार केशों का अंकन है। नाभि के पास तीन वलय (रेखाएँ) भी हलके-से उत्कीर्ग हैं । बाहुबली की आँखें ध्यानमग्न हैं, उनकी दृष्टि नासाग्र है । उनकी गम्भीर मुस्कान भी वैराग्यपूर्ण लगती है। शान्त ध्यानस्थ प्रतिमा मनोहर है। बाहुबली के केश (सामने से) ऊपरी सिरे तक प्रदर्शित हैं। हाथों की ऊँगलियों की तीन हड्डियों का उभार स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। प्रतिमा को यदि पीछे की ओर से देखा जाए तो वहाँ भी जाँघों तक वृक्षों-झाड़ियों का अंकन दिखाई देता है। नीचे दो सर्प बाहर निकलते अंकित हैं और केश कान के निचले सिरे तक प्रदर्शित हैं।
प्रतिमा जिस बड़ी वेदी पर खड़ी है उस पर शृखलाओं, पत्रावली और कमल के फूलों की पंक्तियाँ मनोहारी ढंग से उत्कीर्ण हैं।
मूर्ति का रंग सलेटी है किन्तु कुछ सफेद या मटमैली-सी धारियाँ भी दिखाई देती हैं।
बाहुबली प्रतिमा के सामने ही, पीतल की बाहुबली की एक छोटी प्रतिमा भी दोनों पैरों के बीच में रखी हुई है। दोनों ओर हंस चित्रित पाँच-छह फुट ऊँचे पीतल के दीपदान हैं। मूर्ति के सामने अखंड दीप जलता रहता है।
बाहुबली की प्रतिमा के दर्शन के लिए प्रतिदिन हजारों दर्शकों का तांता लगा रहता है। यात्रियों के विश्राम के लिए ढलुआ छत का आठ स्तम्भों पर आधारित एक मण्डप इसी अहाते में मानस्तम्भ के पास बनाया गया है। मानस्तम्भ के बाद, प्रतिमा के सामने ही, एक ध्वजस्तम्भ भी है।
_ 'बाहुबली विहार' नामक यह विशाल प्रांगण स्वच्छ, शान्त और पानी-बिजली की सुन्दर व्यवस्था से परिपूर्ण है । एक हैण्डपम्प भी वहाँ लगा रखा है। फ्लडलाइट की भी अच्छी व्यवस्था है। बिजली की रोशनी में बाहुबली की अनूठी छटा विशेष आकर्षक हो जाती है। इस स्थान के आसपास की दृश्यावलि मनोहर है ही; पहाड़ियाँ और घाटियाँ, हरे-भरे वृक्ष, मोड़ लेती सड़कें, मूर्ति के सामने खड़े होकर दाहिनी ओर दिखाई देनेवाली ऊँची पर्वतमाला यात्री में स्फूति एवं प्रकृति-प्रेम जगाती हैं। हर यात्री इस छटा को निहारता, उस सुरम्य स्थान में अपने व्यस्त क्षणों को भुला देने का प्रयत्न करता दिखाई देता है। तपस्यारत बाहुबली भी क्लान्त-श्रान्त यात्री को सहज सुख का अनुभव कराते हैं।
अण्णप्पा स्वामी-महाद्वार के बाईं ओर अण्णप्पा स्वामी के मन्दिर के लिए सीढ़ियाँ हैं। अण्णप्पा वर्ष में एक बार हेग्गडेजी को आश्वस्त करते हैं कि दान करते जाओ, यात्रियों को सुख दो, तुम्हें द्रव्य की कभी कमी नहीं होगी। इस मन्दिर में स्त्रियाँ और बच्चे प्रवेश नहीं कर सकते।
मंजुनाथ मन्दिर-कुछ और आगे जाने पर मंजुनाथ मन्दिर है। यह शिव-मन्दिर है। इसके आगे अपार जनसमूह होता है। लाइन लगती है किन्तु दर्शन-सेवा आदि का बड़ा व्यवस्थित क्रम चलता है। मन्दिर बहुत विशाल है। उसमें गणेश और शिव की मूर्तियाँ सोने की हैं। दरवाजों की चौखटों और कलापूर्ण ढंग से उत्कीर्ण स्तम्भों पर चाँदी मढ़ी गई है। देवी