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हम्पी / 83
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स्पष्ट जैन चिह्नों के अभाव में यह मन्दिर विवादास्पद है । कुछ विद्वान इसे वैष्णव मन्दिर सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं । किन्तु प्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञ लांगहर्स्ट ने इसे अपनी पुस्तक के अन्त में दिए गए नक्शे में जैन मन्दिर ही सूचित किया है। इसकी रचना - शैली (शिखर) के आधार पर वे इसे जैन मन्दिर स्वीकार करने के पक्ष में हैं । उनका यह भी विचार है कि इसमें जो वैष्णव मूर्तियाँ आदि हैं वे सब गर्भगृह के बाहर हैं । उससे बाहर इनका उत्कीर्णन किसी समय होता था या कारीगरों को इसकी अनुमति दे दी जाती थी । उन्होंने दक्षिण कन्नड़ में इस प्रकार के उत्कीर्णन का प्रमाण दिया है । यदि पर्यटक चाहे तो आज भी कारकल के चौमुखा जैन मन्दिर के बाहर की दीवाल पर राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ खुदी हुई देख सकता है । केरल में पुत्तंगडी नामक एक गाँव में एक ध्वस्त जैन मन्दिर है । उसकी बाहरी दीवाल पर विष्णु के दस अवतार उत्कीर्ण हैं । इनमें ऋषभदेव भी हैं जिन्हें वैष्णव जन विष्णु का आठवाँ अवतार आज भी मानते हैं (भागवतपुराण में उनका विशद वर्णन है ) । एक समय था जब वैष्णव और जैन बड़े सहयोग से रहते थे । इसी कारण मन्दिरों के गर्भगृहों के बाहर वैष्णव अंकन भी करने दिया जाता था । स्वयं हम्पी में, हज़ारा राम नामक राममन्दिर के बाहर की दीवालों पर तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । शृंगेरी के विद्याशंकर मन्दिर की बाहरी दीवालों पर भी तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं ।
आधुनिक युग के प्रख्यात पुरातत्त्वविद् श्री शिवराममूर्ति ने भी अपनी पुस्तक 'साउथपेनोरमा ऑफ जैन आर्ट' में इसका चित्र जैन मन्दिर के रूप में ही दिया है ।
पर्यटक स्वयं देख सकते हैं कि इस मन्दिर के दो स्तम्भों पर पद्मासन में तीर्थंकर मूर्तियाँ जैसी हैं किन्तु उनके हाथ ऊपर उठे हुए हैं। इस प्रकार की मूर्तियाँ उपदेश - मुद्रा में उपाध्याय परमेष्ठी की बताई जाती हैं । अतः ये उपाध्याय मूर्तियाँ हो सकती हैं। इसके सामने का ऊँचा स्तम्भ मानस्तम्भ ही लगता है ।
मन्दिर में हाथियों, नर्तकों, वादकों आदि का सुन्दर उत्कीर्णन है । इसकी दीवाल क़िले जैसी है । अहाता बड़ा है ।
इसी के अहाते में एक दो मंज़िल स्तम्भों पर आधारित खुला मण्डप है । कुछ लोग इसे 'व्यास-मण्डप' कहते हैं जहाँ शिक्षा दी जाती थी । वास्तव में यह उत्सव - मण्डप रहा होगा ।
22. सुग्रीव की गुफा – जैन मन्दिर से नीचे उतरने पर सुग्रीव की गुफा बताई जाती है । यह नदी के किनारे पर है। कहा जाता है कि अपने हरज के समय सीता ने जो आभूषण आदि नीचे फेंके थे उन्हें सुग्रीव ने इसी गुफा में रखा था ।
23. पत्थर का पुल – गुफा के पास तुंगभद्रा नदी पर पत्थर के एक पुल के कुछ स्तम्भ दिखायी देते हैं । इसका निर्माण चौदहवीं शताब्दी में हुआ था और यह आनेगुन्दी जाने के काम
आता था ।
24. तुलाभार ( राजा की तुला, King's balance ) - कुछ आगे चलने पर दो ग्रेनाइटी स्तम्भों व एक आड़ी कड़ी (बीम) से बनी 'राजा की तुला' दिखाई देती है । राज्याभिषेक, दशहरा आदि अवसरों पर यहाँ राजा को स्वर्ण आदि से तौला जाता था और दान दिया जाता था ।
25. राय गोपुर - तुलाभार से आगे एक महाद्वार है जो कि शायद अधूरा ही रह गया । अब इसका ध्वस्त अवस्था में कुछ भाग ही शेष है ।