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धारवाड़ जिले के अन्य जैन-स्थल | 105
होने के कारण भी है। यहाँ के शिलालेख से जैन मन्दिर का अच्छा इतिहास मिलता है। यहाँ 750 ई. में चालुक्य शासक के ग्रामाधिकारी द्वारा मन्दिर बनवाए जाने का उल्लेख है । बेलुबल प्रदेश के शासक गंग पेर्माडि ने यहाँ 'गंग पेर्माडि जिनालय' बनवाया था जिसे राजाधिराज चोल ने नष्ट कर दिया था। बाद में उसे चालुक्य सम्राट त्रैलोक्यमल्ल प्रथम सोमेश्वर ने 1053 ई. में इसी स्थान पर मार डाला था। बाद में पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर) के महामण्डलेश्वर ने 1071 ई. में उस जिनालय का जोर्णोद्धार कराया।
यहाँ की सीढ़ियों (बारहवीं सदी) के जंगले पर एक हाथी पर शेर को हमला करते दिखाया गया है। शेर ने हाथी के मस्तक पर पंजा रख दिया है। सिंह के मुंह से पत्रावली की एक सुन्दर डिजाइन भी सीढ़ियों के जंगले पर दिखाई गई है। qarfirit (Budersingi)
हबली तालुक के अन्तर्गत इस स्थान से भी जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इनमें एक चौबीसी प्रमुख है जिसके मूलनायक तीर्थंकर आदिनाथ हैं। उनके दोनों ओर पार्श्वनाथ एवं सुपार्श्वनाथ उत्कीर्ण हैं। छब्बि (Chabbi)
हबली के समीपस्थ इस स्थान का 'धोर जिनालय' एक हजार वर्ष प्राचीन है। इसमें मूल मूर्ति शान्तिनाथ की है। जिस समय (नौवीं शताब्दी में) पांचाल नामक जैन माण्डलिक यहाँ राज्य करता था, उस समय इस जगह का नाम शोभनपुर था। सन् 1060 ई० में यहाँ आचार्य कनकनन्दी का समाधिमरण हुआ था। यहाँ जैनों के सौ से ऊपर घर बताए जाते हैं । एक समय यहाँ सात मन्दिर थे। afstantco (Bannikoppe)
शिरहद्दी तालुक में यह स्थान है। यहाँ की पार्श्वनाथ बसदि आकर्षक है। उसका शिखर अनेक तल वाला है। हाथी, तारों आदि का भव्य अंकन है।
डम्बल (Dambal)
गदग से लगभग 20 कि.मी. पर, इस स्थान से ग्यारहवीं और बारहवीं सदी की अनेक प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रमुख है। यहाँ सत्रहवीं सदी की एक पार्श्वनाथ बसदि भी है जो अब खण्डहर हो गई है (देखें चित्र क्र. 41) । यहाँ एक किले में ध्वस्त जैन मन्दिर है। गुडिगेरि (Gudigeri)
यह स्थान लक्ष्मेश्वर के निकट कुण्डगोल तालुक में है । ईस्वी सन् 1073 में भुवनैकमल्ल द्वितीय सोमेश्वर के अधीनस्थ पेर्गडे प्रभाकर ने यहाँ एक जिनालय 'महावीर बसदि' का निर्माण कराया था। इसमें महावीर स्वामी की मूर्ति है (देखें चित्र क्र. 42) । यहाँ अधिकांश प्रतिमाएँ