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128 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
सन्ध्या के समय पदमावती मन्दिर में नगाडों, घण्टों की ध्वनि के साथ देवी की आरती होती है। फिर देवी की प्रतिमा का, बाहर लाकर गाजे-बाजे सहित पालकी में जुलूस निकाला जाता है, वापसी में पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रदक्षिणा की जाती है । मन्दिर में भी आरती की जाती है और नारियल, केला आदि फलों से पूजा की जाती है।
पद्मावती देवी मुख्य रूप से स्त्रियों की आराध्य देवी है। कर्नाटक में ऐसी स्त्रियाँ कम ही होंगी जो देवी की मनौतियाँ नहीं मानती हों, साड़ी, आभूषण आदि भेंट कर दर्शन नहीं करती हों। लोगों का यह अट विश्वास है कि देवी की प्रसन्नता से मनोकामना पूरी होती है। नारियल, फूल आदि श्रद्धापूर्वक चढ़ाने पर यदि देवी के दाहिनी ओर से फूल गिरे तो मनोकामना पूरी होगी ऐसा माना जाता है । हर शुक्रवार को देवी को विशेष रूप से अलंकृत किया जाता है और विशेष पूजन होती है । देवी के पूजन के लिए यह दिन शुभ माना जाता है।
पंचकूट बसदि या पंचबसदि-यह यहाँ का प्राचीन मन्दिर है जो कि धर्मशाला क्षेत्र से आगे है। पाँच गर्भगृह वाला या पाँच मन्दिरों का समूह यह मन्दिर 10वीं या 11वीं शताब्दी का अनुमानित किया जाता है। यह पाषाण निर्मित है। इस समय यह भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है। इसके पाँच गर्भगृहों में क्रमशः चन्द्रप्रभ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी और ऋषभनाथ की लगभग चार फीट ऊँची प्रतिमाएँ हैं। पद्मावती की दो प्राचीन मूर्तियाँ भी हैं । प्रवेशद्वार के एक ओर धरणेन्द्र की और दूसरी ओर पद्मावती की मूर्तियाँ हैं जो लगभग नौ फीट ऊँची हैं। नवरंग में सरस्वती और सिद्ध भगवान की पद्मासन प्रतिमाएँ भी हैं। इसके द्वार का अंकन सुन्दर है। सिरदल पर दोनों ओर चँवरधारियों सहित पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति भी देखी जा सकती है।
___ उपर्युक्त बसदि का मुखमण्डप खुला एवं स्तम्भाधारित है। सोपान-अँगले पर सुन्दर हाथी और सिंह उत्कीर्ण हैं । मन्दिर की चौकी की ऊँचाई लगभग 6 फीट है। लम्बाई-चौड़ाई 80 फीट x 40 फीट के लगभग होगी। मन्दिर के सामने बलिपीठ चार स्तम्भों से आवृत है। उसके सामने एक सोपान-अँगले में ऊपर गजलक्ष्मी , मकर-तोरण और कीर्तिमुख हैं। दो स्तम्भों पर लेख हैं। मन्दिर के सामने एक चतुर्मुख ब्रह्मदेव स्तम्भ है। नीचे के भाग में संगीत मण्डली, पालकी में राजा-रानी, राजा का जलस उत्कीर्ण हैं। हाथी और व्याल भी प्रदर्शित हैं । एक द्वारपाल लगभग 9 फीट ऊँचाई का है। मन्दिर पर शिखर नहीं है। छत चौरस पाषाण की है । मन्दिर के अहाते में एक त्रिकोण पाषाण में देवनृत्य का दृश्य अंकित है। यहाँ स्मारक-पाषाण भी है।
उपर्युक्त मन्दिर के अहाते में एक छोटा पार्श्वनाथ मन्दिर भी है। उस पर भी शिखर नहीं है, छत ढलुआ है। सिरदल पर तीर्थंकर और कायोत्सर्ग मुद्रा में पार्श्वनाथ की मकरतोरणयुक्त मूर्ति है। उसके पीछे के भाग में कलश आदि उत्कीर्ण हैं।
यहीं, पंचबसदि की सीमा में ही, चन्द्रप्रभ का छोटा मन्दिर भी है।
मुत्तिन केरे (मोती का तालाब)-यह उपर्युक्त प्राचीन मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर है। यह 1300 वर्ष पुराना है । एक किलोमीटर के लगभग लम्बा है। चौड़ाई कहीं कम है तो कहीं ज्यादा । इसमें जाने के लिए सीढियाँ हैं । यह बहुत गहरा है और पानी की कितनी ही कमी